करीब एक दशक पहले जिस हरियाणा से, “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ", अभियान की शुरुआत हुई उसी राज्य में बेटियां घर और परिजनों के बीच सुरक्षित नहीं हैं। हाल में 'ऑनर किलिंग' की घटनाएं फिर छलांग लेने लगी हैं। हालांकि पढ़ाई के अलावा महिलाओं के आर्थिक और राजनीतिक सशक्तीकरण के लिए यहां की पंचायतों में 50 फीसदी आरक्षण के बावजूद महिलाओं के लिए हालात नहीं बदले हैं। महिला सशक्तीकरण के तमाम अभियान दिखावा बनकर रह गए हैं। हरियाणा के 22 जिलों में से 10 जिले दिल्ली-एनसीआर के तीन छोर से सटे हैं। बावजूद इसके राजधानी की आधुनिकता यहां की खाप पंचायतों के वर्चस्व वाले इलाकों में कहीं दिखाई नहीं देती। आज भी यहां लड़कियों के शहरी पहनावे के साथ स्मार्टफोन रखने को बुरा समझा जाता है। यहां के लोग मानते हैं कि फोन के इस्तेमाल से लड़कियां परिवार के खिलाफ जा कर शादी कर सकती हैं।
ऐसे तमाम प्रतिबंधों के बावजूद जब युवा जोड़े व्यवस्था को धता बताने की हिम्मत करते हैं, तो उसकी कीमत उन्हें जान गंवा कर चुकानी पड़ती है। 'ऑनर किलिंग' की दिल दहला देने घटनाएं अदालत, सरकार और पुलिस प्रशासन को बौन साबित करती रहती हैं। ऐसी घटनाओं से लगता है कि खाप पंचायतें परिजनों की मर्जी से बड़ी हैं। इस तरह का अपराधिक दृष्टिकोण चिंताजनक है, लेकिन इस पर कभी ठोस नीति नहीं बनाई गई है। आक्रोश में परिवार की झूठी शान की खातिर हत्या के खिलाफ कानूनी सख्ती की मांग फाइलों में दबी है। खाप पंचायतें अपना दबदबा और बढ़ाने के लिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में संशोधन की मांग कर रही हैं। तीन महीने बाद अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बन सियासी दलों के गले की फांस बन सकता है क्योंकि सभी पार्टियां खाप पंचायतों के मामले में सीधे दखल से हमेशा बचती रही हैं।
Diese Geschichte stammt aus der August 05, 2024-Ausgabe von Outlook Hindi.
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