पंद्रह जुलाई को बांग्लादेश में जो हुआ, उसने 2018 की याद ताजा कर दी। नीलखेत मोड़ पर वॉटर कैनन, पुलिस के वाहन और पुलिसवालों की लंबी कतारे बता रही थीं कि वे पूरी तरह तैयार हैं। किस चीज के लिए? निश्चित रूप से निहत्थे छात्रों को बचाने के लिए नहीं या जनता की सुरक्षा के लिए नहीं। जब छात्रों पर हमला हो रहा था, तो पुलिस ने उंगली तक नहीं उठाई। सत्ताधारी दल के छात्र संगठन छात्र लीग के हथियारबंद गुंडे पिछली रात से अपने गिरोहों को जमा करने में जुटे हुए थे। उन्होंने खुलेआम छात्रों को प्रदर्शन न करने की चेतावनी देते हुए धमकी दी थी। तय था कि पुलिस उनका ही बचाव करेगी, छात्रों का नहीं।
इसकी वजह भी साफ थी। पिछले दरवाजे से दिए जाने वाले कोटा का लाभ छात्र लीग के लिए ही बनाया गया था। जाहिर है, जब हेलमेट पहने सरकारी गुंडे खुले छोड़े गए तो छात्रों के पास अपने बचाव के लिए करने को कुछ खास नहीं था। दूसरी ओर पुलिस ने इस तमाशे को खुलकर चलने दिया। पुलिस तभी हस्तक्षेप कर रही थी जब लोगों की ताकत गुंडों पर भारी पड़ जाती थी।
Diese Geschichte stammt aus der August 19, 2024-Ausgabe von Outlook Hindi.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent ? Anmelden
Diese Geschichte stammt aus der August 19, 2024-Ausgabe von Outlook Hindi.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent? Anmelden
गांधी पर आरोपों के बहाने
गांधी की हत्या के 76 साल बाद भी जिस तरह उन पर गोली दागने का जुनून जारी है, उस वक्त में इस किताब की बहुत जरूरत है। कुछ लोगों के लिए गांधी कितने असहनीय हैं कि वे उनकी तस्वीर पर ही गोली दागते रहते हैं?
जिंदगी संजोने की अकथ कथा
पायल कपाड़िया की फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट परदे पर नुमाया एक संवेदनशील कविता
अश्विन की 'कैरम' बॉल
लगन और मेहनत से महान बना खिलाड़ी, जो भारतीय क्रिकेट में अलग मुकाम बनाने में सफल हुआ
जिसने प्रतिभाओं के बैराज खोल दिए
बेनेगल ने अंकुर के साथ समानांतर सिनेमा और शबाना, स्मिता पाटील, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, गिरीश कार्नाड, कुलभूषण खरबंदा और अनंतनाग जैसे कलाकारों और गोविंद निहलाणी जैसे फिल्मकारों की आमद हिंदी सिनेमा की परिभाषा और दुनिया ही बदल दी
सुविधा पचीसी
नई सदी के पहले 25 बरस में 25 नई चीजें, जिन्होंने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पूरी तरह से बदल डाली
पहली चौथाई के अंधेरे
सांस्कृतिक रूप से ठहरे रूप से ठहरे हुए भारतीय समाज को ढाई दशक में राजनीति और पूंजी ने कैसे बदल डाला
लोकतंत्र में घटता लोक
कल्याणकारी राज्य के अधिकार केंद्रित राजनीति से होते हुए अब डिलिवरी या लाभार्थी राजनीति तक ढाई दशक का सियासी सफर
नई लीक के सूत्रधार
इतिहास मेरे काम का मूल्यांकन उदारता से करेगा। बतौर प्रधानमंत्री अपनी आखिरी सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस (3 जनवरी, 2014) में मनमोहन सिंह का वह एकदम शांत-सा जवाब बेहद मुखर था।
दो न्यायिक खानदानों की नजीर
खन्ना और चंद्रचूड़ खानदान के विरोधाभासी योगदान से फिसलनों और प्रतिबद्धताओं का अंदाजा
एमएसपी के लिए मौत से जंग
किसान नेता दल्लेवाल का आमरण अनशन जारी लेकिन केंद्र सरकार पर असर नहीं