'जब तक रहूं, नृत्य के साथ रहूं'
Outlook Hindi|October 28, 2024
करीब छह दशकों से नृत्य कर रहीं शोभना नारायण अभी थकी नहीं हैं। 75 वर्ष की उम्र में भी उनमें उत्साह और जोश-खरोश भरपूर है । बिरजू महाराज की शिष्या शोभना नृत्यांगना ही नहीं, वरिष्ठ नौकरशाह और लेखिका भी हैं। बिहार के एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार में जन्मी शोभना को संस्कृति और कला से लगाव तथा राष्ट्रीय जीवन-मूल्य विरासत में मिले हैं। वे ऐसे परिवार से हैं जहां दिनकर, धर्मवीर भारती, रमानाथ अवस्थी जैसे साहित्यकारों की मंडली घर पर जमती थी। मां ललिता नारायण लोकसभा का चुनाव पटना से लड़ी थीं। उनका जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी से निजी परिचय था। शोभना नारायण के 75वें जन्मदिन पर पिछले दिनों उनके शिष्यों ने नृत्यसमारोह का आयोजन किया। इस मौके पर उनसे विमल कुमार ने खास बातचीत की। संपादित अंशः
विमल कुमार
'जब तक रहूं, नृत्य के साथ रहूं'

आप 75 वर्ष की उम्र में भी नृत्य में सक्रिय हैं। आप बड़ी अफसर भी रही हैं। कैसे आपने तालमेल बिठाया?

नृत्य मेरी रूह में बसा है। वह मेरी सांस है। शायद यही कारण है कि नौकरी की तमाम व्यस्तताओं के बीच मैं लगातार नृत्य करती रही। देश-विदेश में अनेक कार्यक्रम किए। लोगों को पसंद आया। नृत्य आपको मुक्त करता है, आपको एक अलग दुनिया में ले जाता है। आप नृत्य में विलीन होकर अंतर्ध्यान हो जाते हैं। आपको लगता है कि यह जीवन कुछ सार्थक है। आनंद की परम अनुभूति होती है। नर्तक और दर्शक दोनों उसमें डूब जाते हैं, रस में एकाकार हो जाते हैं।

अब इसी परंपरा को बचाए रखने की जरूरत है। नई शिष्याओं को नृत्य सिखाती हूं। इस उम्र में भी कार्यक्रम करती रहती हूं। जब तक जिंदा हूं, नृत्य के साथ जीवित रहूंगी। ईश्वर से मेरी यही अंतिम प्रार्थना है, जब तक रहूं, नृत्य के साथ रहूं।

आप स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार से हैं, उस बारे में कुछ बताइए?

मेरे नाना श्यामा चरण आजादी की लड़ाई में 1919 में जेल जाने वाले बिहार के पहले व्यक्ति थे। वे फिर 1921 में भी जेल गए और 1923 में सेंट्रल असेम्बली के सदस्य भी रहे। वे मोतीलाल नेहरू तथा श्याम लाल नेहरू के सहयोगी थे। 1930 में ही उनका निधन हो गया था। मेरे पिता के.डी. नारायण फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के जोनल डायरेक्टर पद से रिटायर हुए थे, जिनका निधन 1977 में रेवाड़ी के पास एक रेल दुर्घटना में हो गया था। उनका तबादला होता रहता था इसलिए मेरा बचपन कलकत्ता, बंबई और दिल्ली में बीता।

आपके नाना की बहन भी स्वाधीनता सेनानी थीं?

हां, उनका नाम शारदा देवी था। उन्होंने रामेश्वरी नेहरू के स्त्री दर्पण की तर्ज पर 1916 से लेकर 1930 तक महिला दर्पण नामक पत्रिका निकाली थी। शारदा देवी 1935 में बिहार लेजिस्लेटिव काउंसिल की सदस्य थीं। यानी वे बिहार की पहली महिला विधायक थीं। वे आजादी की लड़ाई में जेल भी गई थीं।

आपको साहित्य-कला से लगाव कैसे हुआ?

Diese Geschichte stammt aus der October 28, 2024-Ausgabe von Outlook Hindi.

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