दुनियाभर के दार्शनिक और अर्थशास्त्री आमतौर पर इस बात से सहमत हैं कि पैसे से आप काफीकुछ खरीद सकते हैं लेकिन समय नहीं खरीद सकते. मगर इस वक्त दिल्ली एयरपोर्ट पर खड़ा अभिषेक अपनी अलग ही थ्योरी गढ़ रहा था कि पैसे से समय नहीं खरीद सकते, यह मान लिया, लेकिन पैसे से समय बचा तो सकते हैं, कैसे, यह खुद अभिषेक की जबानी सुनें जिस में पीढ़ी संघर्ष की भी झलक है.
“मैं बेंगलुरु की एक नामी सौफ्टवेयर कंपनी में बतौर इंजीनियर काम करता हूं. पैकेज है 30 लाख रुपए सालाना. ज्यादा नहीं, 3 महीने पहले तक मैं दूसरी कंपनी में महज 9 लाख रुपए के सालाना पैकेज पर काम करता था. फिर मैं ने जौब स्विच कर लिया. हर साल त्योहारों के इन दिनों में मैं अपने घर भोपाल जरूर जाता हूं लेकिन इस बार प्लेन से जा रहा हूं क्योंकि अब मैं दोनों तरफ का किराया, जो लगभग 12 हजार रुपए होता है, आसानी से अफोर्ड कर सकता हूं.
“त्योहार न केवल मेरे बल्कि मेरे पूरे घर वालों के लिए खास होते हैं क्योंकि हम पांचों यानी बड़ा भाई और कालेजगोइंग छोटी बहन कम से कम 3 दिन साथसाथ इकट्ठा गुजारते हैं. पिछली बार तक मैं आमतौर से ट्रेन से आयाजाया करता था क्योंकि मेरे पास पैसे कम होते थे. नतीजतन, मुझे एक तरफ की जर्नी में ही 28 से 36 घंटे लग जाते थे और लगातार बैठे रहने से थकान होती थी सो अलग. इस से 3 छुट्टियों का नुकसान होता था.
"यह ठीक है कि इस बार फ्लाइट में एक तरफ के ही पैसे ट्रेन के मुकाबले 3 गुना ज्यादा लग रहे हैं लेकिन मुझे उस का कोई मलाल नहीं क्योंकि मैं ने 8 हजार रुपए ज्यादा खर्च कर लगभग 60 घंटे बचा लिए हैं पर मैं खुश हूं, बहुत खुश हूं क्योंकि अब मैं मम्मी, पापा, भैया और छोटी शरारती बहन के साथ ज्यादा टाइम गुजार पाऊंगा.
“पापा ने जरूर फोन पर उम्मीद के मुताबिक हलका सा एतराज जताया था कि हवाई जहाज के किराए में इतने पैसे फूंकना फुजूल की बात है. इतने में तो ये आ जाता वो आ जाता, हम ये कर लेते वो कर लेते और कुछ न करते तो तेरी शादी के काम में ही आ जाता. ज्यादा कमाने लगा है, अच्छी बात है पर पैसे बचाना सीख क्योंकि वही असली कमाई होती है.
वक्तवक्त की बात है
Diese Geschichte stammt aus der October Second 2023-Ausgabe von Sarita.
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