"मम्मा, आज मेरा खाना मत बनाना. आरवी के यहां पार्टी है."
"क्या उस की इंगेजमैंट है ?"
“उफ मम्मा, वह यूएस जा रही है."
"32 साल की हो गई है, शादी कब करेगी?"
"शादी जरूरी है क्या? वह कंपनी में मैनेजर की पोस्ट पर काम कर रही है. 20 लाख रुपए सालाना का पैकेज है. वहां जा कर उस का पैकेज और पोस्ट दोनों ही बढ़ जाएंगे. शादी कर के बस पति की इच्छा के अनुसार रहना, चाय बनाना, खाना बनाना, उन की पसंद के कपड़े पहनना आदिआदि. मैं भी इन सारे झंझटों में नहीं पड़ना चाहती. अकेले रहो, अपनी आजादी से जो मन चाहे वह करो."
रेवती नाराजगी के स्वर में बोली, "रिया, तुम बहुत बोलने लगी हो तुम भी इस साल 31 की हो गई हो. पसंद का कोई लड़का हो तो मुझे मिलवा दो. मुझे ठीक लगेगा तो मैं तुम्हारी शादी उस से करा दूंगी."
"शादी और मैं, माई फुट," रिया बाहर निकलते हुए बोली, “मैं आप से कहना भूल गई थी कि मैं ने जौब चेंज कर के गूगल कंपनी जौइन कर ली है. मेरी सैटरडे को मुंबई की फ्लाइट है. मंडे जोइनिंग है.
"तुम ने पहले तो मुझे कुछ बताया नहीं?"
"अब बता रही हूं न."
रेवती मन में सोचने लगी कि यह नई पीढ़ी शादी से क्यों दूर भाग रही है. शायद यह हम लोगों की तरह पैसे के लिए पति पर निर्भर नहीं रहना चाहती. वह आत्मनिर्भर है, अपने कैरियर के प्रति प्रतिबद्ध है. अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीना चाहती है.
ठीक भी है, कम से कम इन्हें हम लोगों की तरह पैसे के लिए पति के सामने अपना हाथ तो नहीं फैलाना पड़ेगा और न ही सुनना पड़ेगा कि दिनभर करती ही क्या हो.
फिर भी शादी, परिवार और बच्चे तो समय से ही हो जाने चाहिए. लेकिन हम लोग इन के साथ जबरदस्ती भी तो नहीं कर सकते.
आजकल समाज में एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन देखने को मिल रहा है. युवा युवतियों में शादी न करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. यह प्रवृत्ति कई सांस्कृतिक, आर्थिक और व्यक्तिगत कारणों से बढ़ रही है.
आर्थिक स्वतंत्रता
Diese Geschichte stammt aus der December First 2024-Ausgabe von Sarita.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent ? Anmelden
Diese Geschichte stammt aus der December First 2024-Ausgabe von Sarita.
Starten Sie Ihre 7-tägige kostenlose Testversion von Magzter GOLD, um auf Tausende kuratierte Premium-Storys sowie über 8.000 Zeitschriften und Zeitungen zuzugreifen.
Bereits Abonnent? Anmelden
अच्छा लगता है सिंगल रहना
शादी को ले कर लड़कियों में पुराने रूढ़िगत विचार नहीं रहे. जौब, सैल्फ रिस्पैक्ट, बराबरी ये वे पैमाने हैं जिन्होंने उन्हें देर से शादी करने या नहीं करने के औप्शन दे डाले हैं.
मां के पल्लू से निकलें
पत्नी चाहती है कि उस का पति स्वतंत्र व आत्मनिर्भर हो. ममाज बौयज पति के साथ पत्नी खुद को रिश्ते में अकेला और उपेक्षित महसूस करती है.
पोटैशियम और मैग्नीशियम शरीर के लिए कितने जरूरी
जिन लोगों को आहार से मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे अति आवश्यक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाते और शरीर में इन की कमी हो जाती है, उन में कई प्रकार की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा हो सकता है.
क्या शादी छिपाई जा सकती है
शादी का छिपाना अब पहले जैसा आसान नहीं रहा क्योंकि अब इस पर कानूनी एतराज जताए जाने लगे हैं. हालांकि कई बार पहली या दूसरी शादी की बात छिपाना मजबूरी भी हो जाती है. इस की एक अहम वजह तलाक के मुकदमों में होने वाली देरी भी है जिस के चलते पतिपत्नी जवान से अधेड़ और अधेड़ से बूढ़े तक हो जाते हैं लेकिन उन्हें तलाक की डिक्री नहीं मिलती.
साइकोएक्टिव ड्रग्स जैसा धार्मिक अंधविश्वास
एक परिवार सायनाइड खा लेता है, एक महिला अपने लड्डू गोपाल को स्कूल भेजती है, कुछ बच्चे काल्पनिक देवताओं को अपना दोस्त मानते हैं. इन घटनाओं के पीछे छिपा है धार्मिक अंधविश्वास का वह असर जो मानव की सोच व व्यवहार को बुरी तरह प्रभावित करता है.
23 नवंबर के चुनावी नतीजे भाजपा को जीत पर आधी
जून से नवंबर सिर्फ 5 माह में महाराष्ट्र व झारखंड की विधानसभाओं और दूसरे उपचुनावों में चुनावी समीकरण कैसे बदल गया, लोकसभा चुनावों में मुंह लटकाने वाली पार्टी के चेहरे पर मुसकान आ गई लेकिन कुछ काटे चुभे भी.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा
क्या कानून हमेशा समाज सुधार का रास्ता दिखाते हैं या कभीकभी सत्ता के इरादों का मुखौटा बन जाते हैं? 2014 से 2024 के बीच बने कानूनों की तह में झांकें तो भारतीय लोकतंत्र की तसवीर कुछ अलग ही नजर आती है.
अदालती पेंचों में फंसी युवतियां
आज भी कानून द्वारा थोपी जा रही पौराणिक पाबंदियों और नियमकानूनों के चलते युवतियों का जीवन दूभर है. मुश्किल तब ज्यादा खड़ी हो जाती है जब कानून बना वाले और लागू कराने वाले असल नेता व जज उन्हें राहत देने की जगह धर्म का पाठ पढ़ाते दिखाई देते हैं.
"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली
'एफआईआर', 'भाभीजी घर पर हैं', 'हप्पू की उलटन पलटन' जैसे टौप कौमेडी फैमिली शोज की निर्माता बिनायफर कोहली अपने शोज के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का संदेश देने में यकीन रखती हैं. वह अपने शोज की महिला किरदारों को गृहणी की जगह वर्किंग और तेजतर्रार दिखाती हैं, ताकि आज की जनरेशन कनैक्ट हो सके.
पतिपत्नी के रिश्ते में बदसूरत मोड़ क्यों
पतिपत्नी के रिश्ते के माने अब सिर्फ इतने भर नहीं रह गए हैं कि पति कमाए और पत्नी घर चलाए. अब दोनों को ही कमाना और घर चलाना पड़ रहा है जो सलीके से हंसते खेलते चलता भी है. लेकिन दिक्कत तब खड़ी होती है जब कोई एक अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते अनुपयोगी हो कर भार बनने लगता है और अगर वह पति हो तो उस का प्रताड़ित किया जाना शुरू हो जाता है.