अन्नदाता की पीड़ा और किसान आंदोलन
Sarita|March Second 2024
किसानों की आय दोगुनी करने के वादे के साथ मोदी सरकार सत्ता में आई थी. आय दोगुनी तो नहीं हुई पर बड़ी संख्या में आज किसान दूसरी बार सड़कों पर आंदोलन करने को मजबूर हो गए हैं. वे स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करवाना चाहते हैं परंतु मामला फंसता नजर आ रहा है.
योगेश कुमार गोयल
अन्नदाता की पीड़ा और किसान आंदोलन

हाल ही में केंद्र सरकार ने किसानों के मसीहा कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश के चौधरी चरण सिंह और भारत में हरित क्रांति के जनक वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न देने की घोषणा की थी लेकिन उन्हीं स्वामीनाथन की सिफारिशों को लागू नहीं करने को ले कर किसान एक बार फिर बड़े आंदोलन के लिए सड़कों पर हैं. सरकार द्वारा उन पर हमेशा की तरह लगातार आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे हैं और रबड़ की गोलियां दागी जा रही हैं.

किसानों ने इस से पहले केंद्र सरकार द्वारा उन की मांगें माने जाने की घोषणा के बाद 21 नवंबर, 2021 को 378 दिन लंबे चले अपने आंदोलन को खत्म किया था लेकिन अगर सवा दो वर्ष बाद वे एक बार फिर सड़कों पर हैं तो उस के कारणों की पड़ताल करना जरूरी है.

किसानों का कहना है कि पिछले आंदोलन को वापस लेते समय सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गारंटी का जो वादा किया था, वह अभी तक पूरा नहीं हुआ है.

एमएसपी, जो खुले बाजार में फसलों के मूल्य में होने वाले उतारचढ़ाव से किसानों को सुरक्षा देने के लिए जरूरी है, किसानों की बहुत पुरानी मांग है और उन का यह कहना गलत नहीं माना जा सकता कि जिन एम एस स्वामीनाथन को केंद्र सरकार ने भारत रत्न से नवाजा है, वे स्वयं एमएसपी देने की सिफारिश कर चुके हैं और स्वामीनाथन का सम्मान तो तभी होता, जब उन की सिफारिशों के अनुरूप किसानों को एमएसपी दे दिया जाता.

1960 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति के कारण भारतीय कृषि में क्रांतिकारी बदलाव आए. उस क्रांति के कारण खाद्य उत्पादन में बढ़ोतरी हुई, जिस के परिणामस्वरूप गरीबी और भुखमरी में कमी आई लेकिन हरित क्रांति का लाभ सभी किसानों को नहीं मिला और छोटे तथा सीमांत किसान पीछे रह गए.

सड़कों पर किसान

Diese Geschichte stammt aus der March Second 2024-Ausgabe von Sarita.

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