सारंग की पत्नी का देहांत शादी के 10 साल बाद हो गया. अचानक आए तेज बुखार ने एक हफ्ते में उस की इहलीला समाप्त कर दी. तब सारंग का बेटा अनुज मात्र 7 साल का था. पत्नी की अचानक मौत से सारंग टूट गया था. घर में उस के बूढ़े बीमार मांबाप, नन्हा सा बच्चा और अकेला सारंग जिसे इन तीनों की जिम्मेदारी उठानी थी. पत्नी का गम धीरेधीरे कम हुआ तो सारंग ने फिर से नौकरी पर जाना शुरू किया.
वह एक स्कूल में टीचर था. पहले उस का बेटा जिस स्कूल में पढ़ रहा था, वहां से उस को निकाल कर सारंग ने उस का एडमिशन अपने ही स्कूल में करवा लिया ताकि वह उस के साथ ही स्कूल आए जाए. पहले उस की पत्नी ही बच्चे का खयाल रखती थी. उस को स्कूल लाना, ले जाना, पेरैंटटीचर मीटिंग अटैंड करना, बच्चे की जरूरत का सामान खरीदना सारी जिम्मेदारी पत्नी की थी. मगर अब सुबह बच्चे को उठाना, तैयार करना, उस को नाश्ता कराना, उस का बैग पैक करना, लंच बनाना, मातापिता को नाश्ता देना और उन के लिए लंच तैयार कर के जाना सब काम अकेले सारंग के जिम्मे आ गया था.
बच्चे को ले कर सारंग बहुत प्रोटैक्टिव हो गया था. वह उसे हर वक्त अपने साथ रखता था. उस को अकेले घर से बाहर नहीं जाने देता था. सामने पार्क में शाम को अनेक बच्चे खेलते थे मगर सारंग अपने बेटे को नहीं भेजता था. दरअसल पत्नी की अचानक मौत ने सारंग को डरा दिया था. वह नहीं चाहता था कि उस के बेटे को कोई खरोंच भी आए.
अनुज भी मां के जाने के बाद अपने पिता के बहुत निकट आ गया था. वह बड़ा हो रहा था मगर फिर भी रात में वह पिता से ही लिपट कर सोता था. हर बात अपने पिता सारंग से पूछ कर करता था. जिस उम्र में बच्चे अपनी साइकिल ले कर पूरा शहर नाप आते हैं, अनुज अपने पिता की बाइक पर उन के पीछे बैठ कर हर जगह जाता था. हालांकि उस के पास साइकिल थी, मगर वह साइकिल उस ने बस अपनी गली में ही चलाई. बाहर सड़क पर नहीं. सारंग ही कभी उस को अकेले निकलने नहीं देता. यहां तक कि सामने की दुकान से ब्रेड भी लानी हो तो सारंग खुद ही लाता, अनुज को न भेजता कि कहीं सड़क पार करते समय कोई दुर्घटना न हो जाए.
Diese Geschichte stammt aus der November First 2024-Ausgabe von Sarita.
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