भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के नए गवर्नर को मुझ जैसे तमाम स्तंभकार उन अहम सवालों के बारे में सलाह दे रहे हैं, जो उनके सामने हैं। मगर इस समय की खास बात यह है कि गवर्नर की सफलता की जिम्मेदारी सरकार पर है।
अधिकतर केंद्रीय बैंकों का काम मौद्रिक नीति पर ध्यान देना ही होता है मगर रिजर्व बैंक की भूमिका काफी लंबी-चौड़ी है। दिक्कत यह है कि रिजर्व बैंक की इन भूमिकाओं में बुनियादी तौर पर आपसी टकराव है। उसकी ज्यादातर दिक्कतें भी इन टकरावों के कारण ही उपजी हैं। ये भूमिकाएं क्या हैं?
1. रिजर्व बैंक एक मौद्रिक प्राधिकरण है और इसके इन कामों पर अब मौद्रिक नीति समिति का नियंत्रण है। इस समिति में गवर्नर और रिजर्व बैंक की बात अंतिम चाहे न हो मगर निर्णायक जरूर होती है।
2. यह बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का नियामक भी है। यह जमा बीमा संस्था का स्वामी भी है, जिसका काम तब शुरू होता है जब बैंक नाकाम हो जाते हैं (जिसमें बैंकिंग नियमन की नाकामी का भी हाथ होता है)।
3. यह भुगतान निपटान का नियामक भी है। इसके पास भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम का परोक्ष नियंत्रण भी है।
4. यह वित्तीय स्थिरता नियामक भी है जिसका काम सरकार और वित्तीय क्षेत्र की अन्य सांविधिक विनियामक संस्थाओं के साथ मिलकर काम करता है, लेकिन नेतृत्व रिजर्व बैंक के हाथों में रहता है।
5. यह सरकार का खजाना और ऋण संभालता है। साथ ही यह सरकारी डेट बाजार का नियामक भी है। यह सरकारी डेट बाजार का सबसे बड़ा भागीदार है तथा ज्यादातर मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर इंस्टीट्यूट्स (एमआईआई) का स्वामित्व और परिचालन इसी के पास है।
6. यह विदेशी मुद्रा के प्रवाह को काबू में रखता है और विदेशी मुद्रा बाजार का सबसे बड़ा खिलाड़ी भी है।
7. यह मुद्रा का प्रमुख नियामक है और यही मुद्रा जारी भी करता है। इसके पास मुद्रा छापने वाली प्रेस भी हैं। मगर संसदीय विधानों के तहत मुद्रा से जुड़ी ज्यादातर औपचारिक नियामकीय भूमिका सरकार की ही हैं।
Diese Geschichte stammt aus der December 21, 2024-Ausgabe von Business Standard - Hindi.
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