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सोशल मीडिया (प्रसार माध्यम)
प्रसार माध्यमों के द्वारा विज्ञापनों को हम पर थोपा जाता है। अनावश्यक जरूरतें निर्माण की जाती हैं। कई बार इनके बिना हमारे जीवन का कोई अर्थ ही नहीं है, ऐसा लगने लगता है। हमारी भोगवृत्ति जाग्रत करके, भावनाएं जगाकर उसमें से यह व्यावसायिक माध्यम हमें आर्थिक रूप से लूटते हैं। यह समझना कठिन होता है। इसी को हम अनेक बार लेटेस्ट फैशन (Latest Fashion) के नाम पर स्वीकार कर लेते हैं। इस होड़ में इसका कोई पर्याय नहीं है। यहाँ तक यह विचार हम पर लादे जाते हैं। जो देखते हैं, जो करते हैं, वह ठीक नहीं है यह जानते हुए भी हम वही करते रहते हैं।
स्वावलम्बी नारी
SWOT यह अच्छा क्यों है, तो वह इसलिए कि वह हमें ऐसे अवसरों का खुलासा करने में सहयोग कर सकता है। इस बात का हमने विचार नहीं किया है। अपनी दुर्बलता को समझकर, अपनी क्षमता को कम करनेवाले खतरों को पहले ही पहचान कर उन्हें दूर किया जा सकता है। इसका उपयोग कर हम अपने समवयस्कों में विशेष पहचान बना सकते हैं और आगामी जीवन के लिए आवश्यक कुशलताएँ तथा क्षमताएं विकसित कर सकते
वीरांगना झलकारीबाई
स्थानिक विभूमियों की कथा
डॉ.कलाम को सलाम
२७ जुलाई स्मृति दिवस पर विशेष
स्वामी विवेकानन्द
३ जुलाई महासमाधि दिवस पर विशेष
महामारी के संक्रमण काल में स्वामी विवेकानन्द का मिशन
जब स्वामी विवेकानन्द ने कहा था लोगों की सहायता के लिए मठ की भूमि भी बेच देंगे
नवभारत के मंत्रद्रष्टा
सन् १६२६ की बात है। मैं उस समय १२ या १३ वर्ष का बालक था। विद्यालय उन दिनों बंद था। मैं अपने बहनोई श्री अण्णा सोहनी के यहां नागपुर में छुट्टियां बिताने गया था।
भरोसा रखिए, इस अंधियारी रात की भी सुबह होगी
निस्संदेह, जिस पर विपत्ति आती है उसकी पीड़ा वही जानता है। हम सब अनुभव कर सकते हैं लेकिन भुगतना तो उन्हीं को पड़ता है। जिनको भुगतना पड़ रहा है उनके सामने आप चाहे नीति और विचार के जितने वाक्य सुना दें तत्काल उनका मानस उसे ग्रहण करने की स्थिति में नहीं होता। चाहे कितनी बड़ी आपदा हो, विनाश का हाहाकार हो, चारों ओर मृत्यु का भय व्याप्त हो, मनुष्य के नाते हमें भविष्य के लिए आशा की किरण की ही खोज करनी होती है।
अद्वितीय वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम हिन्दुस्तान की अद्वितीय वीरांगना के रूप में लिया जाता है। उनकी महत्ता का प्रमाण यही है कि सन् १६४३ में जब नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने सिंगापुर में आजाद हिंद फौज में स्त्रियों की एक रेजीमेंट बनाई तो उसका नाम “रानी झांसी रेजीमेंट" रखा गया। उनका बचपन का नाम मनुबाई था। उनके पिता मोरोपन्त तांबे पेशवा बाजीराव द्वितीय के आश्रित थे।
हमारा भोजन
(गतांक से आगे)३. हर समय, हर जगह, राह चलते हुये भोजन की आदत ठीक नहीं है।... राह चलते हुये खाना एक तो सभ्यता के अन्तर्गत नहीं आता और दूसरा यह पचने के लिये भी ठीक नहीं है।
भारतमाता के वीर सपूत स्वातंत्र्यवीर सावरकर
अप्रितम क्रान्तिकारी, दृढ़ राजनेता, समर्पित समाज सुधारक, दार्शनिक, द्रष्टा, महान कवि और महान इतिहासकार आदि अनेकानेक गुणों के धनी वीर सावरकर हमेशा नये कामों में पहल करते थे। उनके इस गुण ने उन्हें महानतम लोगों की श्रेणी में उच्च पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया ।
ओटीटी प्लेटफार्म पर अंकुश आवश्यक
आज के युग में तकनीक जिसे टेक्नोलॉजी कहते हैं वो लगातार और तीव्रता के साथ बदल रही है। इसके व्यवहारिक पक्ष को हम सभी ने कोरोना काल में विशेष तौर पर महसूस किया जब घर बैठे कार्य करने के लिए वर्चुअल और ऑनलाइन मीटिंग्स, स्कूल की कक्षाओं का संचालन या फिर वर्क फ्रॉम होम जैसे विभिन्न माध्यम आस्तित्व में आए। इतना ही नहीं कल तक जो फिल्में और टीवी विश्वभर में मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय साधन थे आज इंटरनेट और विभिन्न ओटीटी प्लेटफार्म उनकी जगह ले चुके हैं। जब २००८ में भारत में पहला ओटीटी प्लेटफार्म लॉन्च हुआ था तब से लेकर आज जबकि लगभग ४० ओटीटी प्लेटफार्म हमारे देश में मौजूद हैं, इसने काफी लम्बा सफर तय किया है।
ऋषियों ने दिया श्राप
बालक हनुमान बहुत ही चंचल और नटखट स्वभाव के हैं। दिनभर मौज-मस्ती किया करते हैं। कभी पेड़ की ऊँची डालियों पर छलांग लगाते हुए बहुत दूर तक निकल जाते और कभी पेड़ों को तने सहित हिलाकर अपनी शक्ति का अनुमान लगाते। जंगल के पशु-पक्षियों से वे प्रेम भी बहुत करते, उनकी सहायता भी करते, किन्तु कभी-कभी किसी हिरन की पूँछ पकड़कर उसे घुमाते हुए या किसी हाथी का पैर पकड़कर रोकते हुए अपने बल का परीक्षण भी करते रहते। हनुमान के ऐसे खेलों के कारण जंगल के सभी पशु उनसे डरते भी हैं। पर कोई सबल किसी दुर्बल को कष्ट दे, यह हनुमान कभी सहन नहीं करते। ऐसे में वे दुर्बल की रक्षा करते और मित्रों को कष्ट देनेवाले को सबक भी सिखाते।
श्री कृष्णभक्त महाप्रभु वल्लभाचार्य
भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधारस्तम्भ तथा पुष्टिमार्ग के प्रणेता थे श्री कृष्णभक्त महाप्रभु वल्लभाचार्य। उनका जन्म ऐसे काल में हुआ था जब सम्पूर्ण देश में इस्लाम की बर्बरता अपने चरम पर थी। मन्दिर तोड़े जा रहे थे और हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का क्रम तेजी से चल रहा था।
खगोल और ज्योतिष विद्या में अग्रणी थे कश्मीरी पंडित
धरती पर स्वर्ग है कश्मीर, कश्यप ऋषि की तपोभूमि है कश्मीर और कश्मीरी पंडितों की जन्मस्थली है कश्मीर। लेकिन यह दुर्भाग्य है कि कश्मीर पर अधिकांश समय गैरकश्मीरियों का अधिकार रहा। वर्तमान में भी मूल निवासी कश्मीरी पंडितों को बलपूर्वक कश्मीर से भगा दिया गया। तत्कालीन केन्द्र सरकार मूक दर्शक बनकर देखत रही। आज वे अपनी जन्मस्थली से मानसिक पीड़ा झेलते हुए भारत में ही अन्य जगहों पर विस्थापित जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
भगवान महावीर है सार्वभौम धर्म के प्रणेता
सदियों पहले महावीर जनमे। वे जन्म से महावीर नहीं थे। उन्होंने जीवन भर अनगिनत संघर्षों को झेला, कष्टों को सहा, दुःख में से सुख खोजा और गहन तप एवं साधना के बल पर सत्य तक पहुँचे, इसलिए वे हमारे लिए आदर्शों की ऊँची मीनार बन गए। उन्होंने समझ दी कि महानता कभी भौतिक पदार्थों, सुख-सुविधाओं, संकीर्ण सोच एवं स्वार्थी मनोवृत्ति से नहीं प्राप्त की जा सकती उसके लिए सच्चाई को बटोरना होता है, नैतिकता के पथ पर चलना होता है और अहिंसा की जीवनशैली अपनानी होती है। महावीर जयन्ती मनाने हुए हम केवल महावीर को पूजे ही नहीं, बल्कि उनके आदर्शों को जीने के लिए संकल्पित हो।
निर्मल मन जन सो मोहि पावा...
अयोध्या में श्रीराम मन्दिर के निर्माण का कार्य शुरू हो गया है। इससे पूरे भारत में अपूर्व आनंद की लहर उठी है। लोग, श्रीराम मन्दिर के निर्माण कार्य में कुछ न कुछ अर्पित करना चाहते हैं और देश में इसके लिए अनगिनत लोगों ने अपने मेहनत की कमाई का कुछ अंश अर्पित किया है। इस कार्य में छोटे आयु के बाल-बलिकाओं और गरीब से गरीब व्यक्ति ने भी आगे बढ़कर योगदान किया है।
अरुणाचल में अखिल भारतीय अधिकारी बैठक सम्पन्न
अरुणाचल : विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी की 'अखिल भारतीय अधिकारी बैठक' अरुणाचल प्रदेश के निर्जुली स्थित विवेकानन्द केन्द्र विद्यालय परिसर में १२, १३ और १४ फरवरी, २०२१ को सम्पन्न हुई।
अद्भुत बालक हनुमान
प्राचीन काल में कांचनगिरी नाम का एक विशाल पर्वत क्षेत्र था। इसे सुमेरू पर्वत भी कहा जाता था। यह पर्वत क्षेत्र विराट घने जंगल से घिरा हुआ था और इसमें बड़ी संख्या में वानर रहा करते थे।
स्वामी विवेकानन्द एवं आत्मनिर्भर भारत
युवासंत एक ऐसे देश के युवावर्ग को अपनी अतुलनीय वाग्मिता एवं ज्ञान से जाग्रत करने में अपनी सफल भूमिका निभानेवाले थे स्वामी विवेकानन्द। स्वामीजी ने भारतमाता को विश्व दरबार में विश्वगुरु का सर्वोत्तम आसन दिलाने में अपने स्वाभिमानी मन का निरन्तर प्रचार-प्रसार कर, पराधीनता की मजबूत बेड़ियों में जकड़ी भारतमाता को एक अदम्य चेतना से विश्व पटल पर प्रतिष्ठित किया।
होली के विविध रंग
फाल्गुन मास की पूर्णिमा को रंगों का त्यौहार होली सबके लिए खुशियों व उमंगों की झोली भरकर लाता है।
प्रल्हाद के बीज कहां है?
कोरोना काल ने समग्र विश्व को बुरी तरह प्रभावित किया है और मनुष्य को संयम तथा धैर्य के साथ जीवन जीने के लिए बाध्य कर दिया है। इतना ही नहीं तो इस काल ने मानव जाति को संक्रामक व्याधियों को लेकर चिन्तित किया है, और भविष्य में होनेवाले कोरोना जैसे संकटों का सामना किस तरह किया जाए इस पर वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं।
भारतीय हस्तशिल्प : रचनात्मकता और कलात्मकता का अनूठा संगम
भारत का हस्तशिल्प/परम्परागत शिल्प विश्व प्रसिद्ध है, प्राचीन काल से ही यह शिल्प विश्व को दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर करता रहा है। तत्कालीन समय में ऐसे शिमों का निर्माण हुआ जिसने विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया।
स्वामीजी की दृष्टि में भारतीय नारी शक्ति
नारी शक्ति और उसके जागरण के सम्बन्ध में स्वामी विवेकानन्द की विचारदृष्टि बड़ी उदात्त और प्रासंगिक है। स्वामी विवेकानन्द ने नारी जाति, विशेषतः भारतीय नारी की महिमा को विश्वपटल पर प्रतिष्ठित किया है स्वामी विवेकानन्द ने स्त्रियों को सदैव पूजनीय माना है।
गीता का सन्देश योद्धाओं के लिए
'विवेकानन्द स्वामी विवेकानन्द कहते हैं कि तुम फुटबाल के जरिये स्वर्ग के ज्यादा निकट होंगे बजाय गीता का अध्ययन करने के। स्वामीजी ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि गीता ने प्रेम, ज्ञान और कर्म इन तीन महान साधनों और शक्तियों का समन्वय साधित किया है।
केशकाल का भव्य झरना : उमरादाह
प्रकृति की अपार खूबसूरती से भरा बस्तर संभाग अपने अकृत प्राकृतिक सौंदर्य और खनिज सम्पदा के लिए जाना जाता है। इसी क्रम में अविभाजित बस्तर जिले से मुक्त होकर बने नवीन जिले कोंडागांव में पर्यटन की अपार सम्भावनाएं हैं, जिसका सिरमौर केशकाल विकासखंड है।
दीपोत्सव
जिस देश की संस्कृति में जन्म से लेकर मृत्यु तक को उत्सव की तरह मनाया जाता हो वहां यही कहा जा सकता है कि यहां हर पल की उत्सवता एक स्वभाव एवं जीवन दर्शन बनकर हमारे जीवन में रची-बसी है। हमारे देश की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत अनेक विविधताओं और रंगों को समेटे हुए हैं ।
प्रकाश का पर्व दीपावली
प्रकाश का पर्व दीपावली
रामायण साहित्यों में विज्ञान
वैमानिक-शास्त्र में चार प्रकार के विमानों का वर्णन है। ये काल के आधार पर विभाजित हैं। इन्हें तीन श्रेणियों में रखा गया है। इसमें श्मंत्रिका' श्रेणी में वे विमान आते हैं, जो सतयुग और त्रेतायुग में मंत्र एवं सिद्धियों से संचालित व नियंत्रित होते थे। दूसरी श्रेणी श्तांत्रिका' है, जिसमें तंत्र शक्ति से उड़ने वाले विमानों का ब्यौरा है। इसमें तीसरी श्रेणी में कलयुग में उड़ने वाले विमानों का ब्यौरा भी है, जो इंजन (यंत्र) की ताकत से उड़ान भरते यानी भारद्वाज ऋषि ने भविष्य की उड़ान प्रौद्योगिकी क्या होगी, इसका अनुमान भी अपनी दूरदृष्टि से लगा लिया था। इन्हें कृतक विमान कहा गया है। कुल २५ प्रकार के विमानों का इसमें वर्णन है।
खिलाफत आंदोलन : प्रासंगिकता और विमर्श
खिलाफत आंदोलन (१९१९-१९२४) भारतीय मुस्लिमों के बीच उत्पन्न हुए एक तनाव का परिणाम था, जो प्रथम विश्व युद्ध के अंत में तुर्की ओटोमन साम्राज्य के विखंडन और तुर्की में खलीफा पद की समाप्ति की आशंका के परिणामस्वरूप प्रारम्भ हुआ था।