छोटी-छोटी खुशियों का संग्रह है जिंदगी। खुशियों का पूरा गगन किसी के भी पास नहीं है कि मनुष्य जब चाहे खुशी का सितारा तोड़ कर जिंदगी को संवार ले | मनुष्य ने मौसम, दिन, वातावरण, रीति रिवाज, रिश्ते-नाते, मोहब्बत, प्रेम, लगाव तथा परम्पराओं इत्यादि को मद्देनजर रखते हुए हर्ष, चाव इत्यादि को ढूंढने के लिए मेलों, त्यौहारों को अस्तित्व में लाया गया। अगर मनुष्य की जिंदगी से मेले-त्यौहार तथा महत्वपूर्ण दिनों को मनफी कर दिया जाए तो समस्त जिंदगी नीरस सी, फीकी एवं बे-स्वाद सी होकर रह जाए। मनुष्य की जिंदगी में खूबसूरतियां, सुन्दरता, सौन्दर्य, जीने की उमंग, एक ललक तथा एक इच्छा पैदा करते हैं मेले एवं त्यौहार।
लोहड़ी शब्द लोही से बना जिसका अभिप्राय है वर्षा होना, फसलों का फूटना। एक लोकोक्ति है अगर लोहड़ी के समय वर्षा न हो तो कृषि का नुकसान होता है। परंपरा के गुलशन से ही जन्म लेता है लोहड़ी का त्यौहार। यह त्यौहार मौसम के परिवर्तन, फसलों का बढ़ना तथा कई ऐतिहासिक तथा दन्त कथाओं से जुड़ा हुआ है। मुख्य तौर पर भारत का प्रसिद्ध राज्य पंजाब उत्तरी भारत कृषि प्रधान राज्य है। इसी वजह से किसानों, जमींदारों एवं मजदूरों की मेहनत का पर्यायवाची है लोहड़ी का त्यौहार। यह त्यौहार हर्ष तथा सद्भावना को सर्दी की अल्हड़ ऋतु में कीर्तिमान करता है। लोहड़ी सभी धर्म के लोगों के लिए एकता का प्रतीक तथा संस्कृति का एक भव्य उपहार है।
लोहड़ी माघ महीने की सक्रांति से पहली रात को मनाई जाती है। किसान सर्द ऋतु की फसलों की बुआई कर आराम फरमाता है। जिस घर में लड़का पैदा हुआ हो उसकी शगुन एवं हर्ष से लोहड़ी पाई जाती है। बैंड-बाजे बजाए जाते हैं। भांड, रिश्ते-नातों के गीत सुना कर हास्य-व्यंग्य के विनोद गायन सुना कर अपने बनती लोहड़ी (बधाई) बटोर कर ले जाते हैं। इस दिन प्रत्येक घर में मूंगफली, रेवड़ियां, चिवड़े, गजक, तिलभुग्गा, तिलचौली, मक्की के दाने, गुड़, फल इत्यादि लोहड़ी बांटने के लिए रखे जाते हैं। गन्ने के रस की खीर बनाई जाती है। दही के साथ इसका स्वाद अपना ही होता है। जिस नवजन्मे बच्चे के लिए लोहड़ी पाई जाती है उसके रिश्तेदार उसके लिए सुन्दर वस्त्र, खिलौने तथा जेवरात इत्यादि बनवा कर लाते हैं।
Diese Geschichte stammt aus der January 2024-Ausgabe von Grehlakshmi.
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