छठ गीत की पर्याय बन चुकीं शारदा। सिन्हा के गानों के बिना बिहार का ये त्यौहार अधूरा ही माना जाता है। माथे पर बड़ी सी बिंदी, सिल्क की साड़ी और गले में बड़ी सी चेन, ये थी उनकी पहचान। देवी की तरह दिखने वाली शारदा सिन्हा की वाणी में सरस्वती का वास है। जीवन भर छठी मैया की पूजा-अर्चना करने वाली पद्मश्री गायिका ने छठ के दिन ही प्राण गंवा दिए। गीत-संगीत के साथ उनको नृत्य का भी बेहद शौक था। उनकी गायिकी में आंचलिक भाषा और बोली की मिठास सुनाई देती थी जो उन्हें आमजन से जोड़कर रखती थी। शारदा सिन्हा के गानों में दर्द-वेदना के साथ मौज मस्ती भी होती थी। मशहूर होने के लिए कभी भी उन्होंने अपने गाने का ट्रैक नहीं बदला। उनके गानों में अश्लीलता ना थी। कोई भी बिहारी ऐसा नहीं होगा जिसके घर में छठ के समय शारदा सिन्हा का गीत ना बजे।
स्टेज पर गाना गाने से पहले वह हमेशा पान जरूर खाती थीं। पान खाने की वह कोई आदी नहीं थी बल्कि वह इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करती थीं। मिथिलांचल में हमेशा मां भगवती को पान प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता था। पान के अलावा वह साड़ियों की भी बेहद शौकिन थी। वह सिल्क की साड़ियां ही ज्यादा पहनना पसंद करती थीं। उनके हाथ हमेशा चूड़ियों से भरे रहते थे। हमेशा साजश्रृंगार में रहने वाली शारदा सिन्हा अपने पति की मौत के बाद मायूस रहने लगी थीं। उनके निधन के 2 महीने बाद ही उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
Diese Geschichte stammt aus der December 2024-Ausgabe von Grehlakshmi.
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