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ऑस्कर को इतनी अहमियत क्यों
Outlook Hindi
|March 31, 2025
सत्यजीत राय की हॉलीवुड और ऑस्कर की सराहना से भारतीय फिल्मकारों पर अमेरिकी सिनेमा के प्रभाव और पश्चिमी मान्यता के महत्व पर उठते हैं कई सवाल

उस शख्सियत ने 23 अप्रैल, 1992 को अंतिम सांस ली। लंबे, चौड़े कंधे, सिर पर काले-घने बाल और तीखे तराशे चेहरे वाली शख्सियत ने कई कला विधाओं में हाथ आजमाया और जिसे भी छुआ, उसे सोना कर दिया। सत्यजीत राय ने कला और सौंदर्यबोध को ऐसे परिभाषित किया, जैसा उनसे पहले बेहद थोड़े आधुनिक भारतीयों ने किया था, और उनके बाद तो कोई न कर पाया। उनकी मृत्यु हुई, तो समूचे भारत में शोक छा गया और बंगालियों को तो लगा कि पुनर्जागरण काल की आखिरी शख्सियत विदा हो गई। उपन्यासकार अमिताभ घोष ने उस अभागे दिन को कुछ इस तरह याद किया है, "सत्यजीत राय की मृत्यु वाला दिन मानो कोलकाता ने पहले कभी नहीं देखा था। खबर फैलनी शुरू हुई, तो पूरे शहर में सन्नाटा छा गया। अगली सुबह, भीषण गर्मी के बावजूद, लाखों लोग उनके पार्थिव शरीर को आखिरी सलाम कहने पहुंचे। शाम को उनका पार्थिव शरीर श्मशान ले जाया गया, तो सड़कों पर मौन व्रत धारण किए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। कई लोगों ने तख्तियां पकड़ी हुई थीं, जिन पर उन्हें “राजा” बताया गया था। पूरा शहर अजीब उदासी में डूबा हुआ था; हर कोई जानता था कि एक युग का अंत हो गया और उसके साथ ही कोलकाता के कला शिखर का दावा भी समाप्त हो गया। शहर अनाथ हो गया था; राजा चला गया था और उसकी जगह लेने वाला कोई नहीं था।”
This story is from the March 31, 2025 edition of Outlook Hindi.
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