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अंधों की सूची में महाराज
Naye Pallav
|Naye Pallav 19
गोनू झा के साथ एकदिन मिथिला नरेश अपने बाग में टहल रहे थे। उन्होंने यूं ही गोनू झा से पूछा कि देखना और दृष्टि-सम्पन्न होना एक ही बात है या अलग-अलग अर्थ रखते हैं?
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गोनू झा में बातें करने की अद्भुत सूझ थी। उन्होंने कहा "महाराज, देखना एक क्रिया भर है, जैसे आप मुझे देख रहे हैं। किन्तु दृष्टि में सूझ भी होती है, जिससे भविष्य के लिए मार्गदर्शन मिल सकता है।"
मिथिला नरेश को गोनू झा की बात पसन्द आई। उन्होंने गोनू झा से फिर पूछा – “मिथिला में दृष्टि-सम्पन्न कितने लोग होंगे?"
गोनू झा ने तत्परता से कहा-"महाराज ! दृष्टिवान व्यक्ति विरल होते हैं। आसानी से मिलते कहां हैं?"
लेकिन महाराज का जिज्ञासु भाव बना रहा। उन्होंने पूछा -"फिर भी, कुछ तो होंगे?"
गोनू झा ने महाराज से कहा- "मुझे कुछ दिनों की मोहलत दें तो मैं आपको ठीक-ठीक बता सकूंगा कि मिथिला में दृष्टि-सम्पन्न हैं भी या नहीं।"
This story is from the Naye Pallav 19 edition of Naye Pallav.
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