देश की गरीबी और जमीनी हालात हर नागरिक के सामने हैं, किसी से छिपे हुए नहीं हैं. ऐसे में 5 साल के लिए चुने जाने वाले राष्ट्रपति का पद विदेश यात्रा पर जाने या 'पिकनिक' पर जाने का दूसरा नाम नहीं होना चाहिए.
राष्ट्रपति चुनाव के समय हमें एक बार सोचना चाहिए कि जिस संवैधानिक पद पर बैठी हुई हस्ती पर पूरे देश का दारोमदार होता है, जिस की पोजीशन पर देश के करोड़ोंकरोड़ रुपए खर्च होते हैं, वह सिर्फ 'पिकनिक' मनाने का दूसरा साधन नहीं होना चाहिए और उस के पास ऐसी शक्तियां होनी चाहिए, जिस से देश मजबूत बने और आगे बढ़े.
यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि देश के पहले राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद से ले कर चाहे ज्ञानी जैल सिंह हों या 'मिसाइलमैन' कहे जाने वाले अब्दुल कलाम, सब ने इस पद की गरिमा को बढ़ाया है.
हाल ही में राष्ट्रपति पद का लगातार ह्रास होता चला जा रहा है. राष्ट्रपति बनने से पहले द्रौपदी मुर्मू राज्यपाल थीं, मंत्री भी बनीं, मगर उन के गांव में बिजली नहीं आ पाई थी. क्या यह विचारणीय नहीं है?
दरअसल, यह व्यवस्था होनी चाहिए कि देश में संवैधानिक पदों पर ऐसे निष्पक्ष लोगों को आना चाहिए, जिन पर कोई उंगली न उठा सके. पद की गरिमा बनी रहे. कोई यह न कह सके, यह तो फलां के 'रबड़ स्टैंप' हैं.
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