भला ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई कंपनी देखते ही देखते आगे, आगे और आगे बढ़ती चली जाए, जबकि उस की जमीनी हालत कमजोर है. सिर्फ देश की सरकार के प्रमुख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गलबहियां डालने से आप देश में तो अपना दबदबा दिखा और बता सकते हैं, मगर दुनिया में आप अपना ढोल भा कैसे बजा सकते हैं?
जी हां, अडाणी समूह के साथ ऐसा तो होना ही था. देश की सत्ता के आशीर्वाद से स्थानीय एजेंसियों को आप आंख बंद करने के लिए मजबूर कर सकते हैं और यह दिखा सकते हैं कि आप रुपएपैसों के मामले में दुनियाभर में आगे निकल रहें हैं, आप नीतियां भी बदल सकते हैं, आप बड़ीबड़ी बेशकीमती चीजों को अपने हाथ में भी ले सकते हैं, चाहे वह रेलवे हो या फिर एयर इंडिया या फिर देश की नवरत्न कंपनियां भी आप देखते ही देखते अपने समूह में मिला सकते हैं.
मगर दुनिया की आंखों में धूल झोंकना मुमकिन नहीं है, इस सचाई को तो आप को मानना ही पड़ेगा. मगर इसे नहीं मानते हुए अगर आप की कमीज पर काले दाग हैं और उसे आप देश से जोड़ते हैं, राष्ट्रभक्ति से जोड़ते हैं, राष्ट्रवाद से जोड़ते हैं, तो यह बिलकुल उचित नहीं कहा जा सकता.
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