इस दिन लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री द्वारा देश को संबोधित करने की परंपरा रही है. ऐसे में सारे देश की निगाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण पर टिकी हुई थी. मगर जैसा कि होता रहा है नरेंद्र मोदी एक बार फिर चूक गए.
अमृत महोत्सव के इस ऐतिहासिक मौके पर देश को एक नई दिशा देने का समय था. एक ऐसा संबोधन, जो देश की जनता में एक ऊर्जा, एक असर पैदा कर देता, मगर प्रधानमंत्री ने इस खास मौके पर जो कुछ कहा वह विवादित हो गया. क्योंकि यह समय परिवारवाद और भ्रष्टाचार जैसे मसले पर चर्चा करने का कतई नहीं कहा जा सकता.
स्वतंत्रता दिवस मौका था, दुनिया के सामने भारत की उन उपलब्धियों को सामने रखने का, जिसे देश ने पाया है. आज मौका था देश की जनता को देश के लिए एक बार फिर समर्पित कर दिखाने का.
सच तो यह है कि हमारे बाद जो देश आजाद हुए, वह आज हम से काफी आगे निकल गए हैं. भारत में इतनी जनसंख्या और इतने संसाधन हैं कि वह सचमुच दुनिया का नेतृत्व कर सकता है, मगर इस दिशा में भाषण सिफर रहा और संसद में या किसी सामान्य रूप से देश को संबोधित करने कर मौके जैसा भाषण दे कर नरेंद्र मोदी ने इस से देश को निराश किया.
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