कोई बड़ी घटना घट जाती है, तो बरसाती मेंढक की तरह कैंडल मार्च और रेपिस्ट को सजा देने की मांग तेजी से उठने लगती है, पर समय के साथ सब शांत हो जाता है और 'जैसे थे' उसी तरह हम सभी अपनी आदत के मुताबिक सबकुछ भूल कर अपनेअपने काम में लग जाते हैं.
खैर, अखबारों में आए रेप के मामलों में कम से कम रेपिस्ट पकड़ा तो जाता है, बाकी इस तरह की न जाने कितनी घटनाएं घर की चारदीवारी में ही घटती हैं, जिन के बारे में किसी को कुछ पता ही नहीं चल पाता. पता चलता भी हो तो अपना होने की आड़ ले कर इस तरह के लोग छूट जाते हैं.
घर में ही छेड़छाड़ और बदसलूकी के मामलों में ज्यादातर टीनएजर्स या कम उम्र के बच्चे शिकार होते हैं, अब तो ऐसे मामलों में लड़के भी महफूज नहीं हैं.
छोटे बच्चों के साथ घर का कोई सदस्य इस तरह का बरताव करता है, तो बच्चा किसी से कहने से डरता है. उस के अंदर 'मेरी बात कोई नहीं मानेगा तो...? मुझे मारेगा तो... ?' इस तरह का डर ज्यादा होता है.
घर में ही सगेसंबंधियों द्वारा की जाने वाली छेड़छाड़ की घटना में जब कम उम्र के बच्चे शिकार होते हैं, तो उन के अंदर इतनी समझ नहीं होती कि उन के साथ उन के अपने ही यह कैसा बरताव कर रहे हैं.
उन छोटे बच्चों को कुछ गलत होने का अनुभव तो होता है, पर यह गलत क्या है और इस बरताव के बारे में किस से कहा जाए, इस की समझ नहीं होती.
उन्हें इस बात का भी डर होता है कि मांबाप से कहेंगे तो वे नहीं मानेंगे और उलटा उन्हें ही डांट पड़ेगी. कुछ मामलों में यह भी होता है कि खराब बरताव करने वाला ही मांबाप से न कहने के लिए डराताधमकाता है.
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