जीवन में ऐसा कोई कार्य नहीं है, जो भक्ति और अध्यात्म की शक्ति से पूरा न हो सके। बस, इस शक्ति को जागृत करने की आवश्यकता होती है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन शास्त्रोक्त विधि-विधान, नियम-संयम द्वारा भक्त, भगवान की ब्रह्मांड में व्याप्त दिव्य शक्तियों के अंश अपनी भक्ति-शक्ति एवं क्षमता के अनुपात में जागृत करते हैं। श्रीकृष्ण का जीवन और उनकी लीलाएं यह संदेश देती हैं कि सच्ची भक्ति और समर्पण से न केवल भगवान को पाया जा सकता है, बल्कि जीवन की अधूरी अभिलाषाओं को भी पूरा किया जा सकता है, फिर चाहे वो संतान प्राप्ति की अभिलाषा हो या धन, वैभव, ऐश्वर्य की प्राप्ति अथवा दुख निवृत्ति । आज के समय में भी देश-विदेश में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर असंख्य भक्तों के मन का उत्साह द्वापर युग की याद दिलाता है।
■ योगमाया है लीला का विस्तार
जन्माष्टमी पर्व भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव तो है ही, साथ में श्रीकृष्ण की माया को विस्तार देने वाली योगमाया का भी प्रादुर्भाव दिवस है, जिनका जन्म बालकृष्ण को कंस के हाथों से के लिए हुआ था । भगवती योगमाया ने कन्या के रूप में उस युग में जन्म लेकर मानव जाति को यह दिव्य संदेश दिया कि कन्या का जन्म बलिदान के लिए नहीं होता जब कंस ने देवकी की आठवीं संतान समझकर योगमाया को उसके पैरों से पकड़कर जमीन पर जोर से पटककर मारना चाहा तो योगमाया ने अट्टहास कर कंस से कहा, "मैं चाहूं तो तुम्हें इसी समय मार सकती हैं, किंतु तुमने मेरे पैर पकड़े हैं और तुम्हारा काल कोई दूसरा है, इस वजह से मैं तुम्हारी जान नहीं ले सकती।” योगमाया कंस के चंगुल से छूटकर अंतर्ध्यान होकर स्वर्ग को जाने से पहले कंस को चेतावनी दे गई थीं कि तुम्हारा का जन्म ले चुका है।
■ दुर्लभ संयोग
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