अरबी (घुइयां) की वैज्ञानिक तरीके से खेती
Farm and Food|July First 2022
अरबी एक कंद वाली फसल है. भारत में इस की खेती लगभग सभी जगहों में की जाती है.
डा. एसपी सिंह, डा. एसके तोमर, डा. एसके सिंह, डा. शैलेंद्र सिंह और डा. कंचन
अरबी (घुइयां) की वैज्ञानिक तरीके से खेती

गरमी और बारिश के मौसम में इस के पौधों का अच्छा विकास होता है. इस के कंद में प्रमुख रूप से स्टार्च एवं पत्तियों में विटामिन ए, कैल्शियम, फास्फोरस और आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.

भूमि एवं जलवायु: अरबी की खेती के लिए उचित जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि सब से उपयुक्त मानी जाती है, जिस का पीएच मान 5.5 से 7 के मध्य हो.

उष्ण एवं समशीतोष्ण जलवायु अरबी की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है. अधिक गरमी और सर्द जलवायु इस के पौधों के लिए हानिकारक होती है.

सर्दियों के मौसम में पाला से पौधों की बढ़वार रुक जाती है. अरबी के कंद 20 से 25 डिगरी सैल्सियस तापमान में अच्छी वृद्धि करते हैं.

खेत की तैयारी व उर्वरक प्रबंधन: अरबी की रोपाई से पूर्व खेत को मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करनी चाहिए. इस से खेत में मौजूद पुराने फसल अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाएं. इस के बाद खेत में 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद अवश्य मिला दें. इस के पश्चात 2-3 जुताई कल्टीवेटर से कर के मिट्टी भुरभुरी बना लेनी चाहिए.

बोआई से पूर्व प्रति हेक्टेयर 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस एवं 60 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग करें और पौधों के विकास के समय रोपाई के 60 दिन बाद खेत में सिंचाई करते समय 20 से 25 किलोग्राम यूरिया का टौप ड्रैसिंग के रूप में प्रयोग करने से अच्छा उत्पादन मिलता है.

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