अगेती शरदकालीन गन्ना की फसल वसंतकाल में बोए गए गन्ने से 20-25 फीसदी व पछेती बिजाई से 40-50 फीसदी अधिक पैदावार देती है व जल्दी पक कर तैयार हो जाती है.
गन्ने की फसल में आमदनी लगभग एक साल बाद मिलती है. वहीं सर्दी के मौसम में फसल की बढ़वार व फुटाव नहीं होता, परंतु इस दौरान गन्ना फसल पर बिना किसी बुरे असर के अंतः फसल उगा कर अतिरिक्त आमदनी ली जा सकती है
वैसे तो गन्ने के साथ अंतःफसल का प्रचलन रहा है, परंतु आज के युग में प्रति एकड़ अधिक आमदनी के लिए गन्ने की फसल में वैज्ञानिक ढंग से अंतःफसलों को उगाना आवश्यक हो गया है.
आमतौर पर अंतःफसल की बिजाई के लिए समतल विधि का प्रयोग बिना लाइन के छींटा विधि से की जाती है, जिस से अंतः फसलों व गन्ने में अंतःक्रियाएं करने में मुश्किलें आती हैं और अंतः फसल की कटाई में परेशानी भी होती है.
बैड प्लांटिंग विधि द्वारा अंतः फसलीकरण
बैड प्लांटिंग विधि फसलों की बिजाई के लिए काफी मददगार साबित हुई है. बैड प्लांटर मशीन द्वारा 75-90 सैंटीमीटर की दूरी पर कूड़ में गन्ना और बैड पर अंतः फसल की बिजाई की जा सकती है.
अंतः फसल के लिए निर्धारित बीज व खाद की मात्रा मशीन में डाल कर बिजाई करें. उस के बाद कूड़ों में सिफारिश की गई मात्रा में गन्ने की 2 आंखों वाला बीज व खाद डालें. पोरी ढकने वाले यंत्र या कस्सी से मिट्टी डाल कर आधे कूड़ की ऊंचाई तक हलका पानी लगाएं.
अंतः फसलीकरण के लाभ
सामान्य बिजाई की तुलना में इस बहुद्देशीय बिजाई तकनीक के और भी लाभ हैं. बीज की मात्रा 20-25 फीसदी तक कम और पानी की 20-30 फीसदी तक बचत होती है. प्रकाश, भूमि एवं प्रकाश तत्त्वों की उपयोग क्षमता में वृद्धि से अंतःफसलों का दाना मोटा में और अधिक उपज मिलती है. जलभराव, क्षारीय/अम्लीय पानी वाले क्षेत्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है. पौधों की अच्छी बढ़वार के कारण खरपतवारों का प्रकोप कम और अंतः क्रियाएं करने में आसानी हो जाती है.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.