करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
Farm and Food|December 2024
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
जगवीर सिंह, एसके वर्मा, अश्विनी कुमार आर्य
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती

पपीते का ज्यादातर उपयोग जैम, पेय पदार्थ, आइसक्रीम एवं सिरप इत्यादि बनाने में किया जाता है. इस के बीज भी औषधीय गुणों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं. पपीते के कच्चे फल सब्जी के रूप में उपयोग किए जाते हैं.

पपीते के कच्चे, लेकिन परिपक्व पपीते के फलों से निकलने वाले दूध को सुखा कर पपेन बनाया जाता है.

प्रजातियां : भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने अनुसंधान के द्वारा पपीते की अनेक प्रजातियां विकसित की हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के केंद्र पूसा, बिहार, तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर और भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलुरु व पंतनगर विश्वविद्यालय के द्वारा कई प्रजातियां विकसित की गई हैं और कुछ विदेशी प्रजातियां भी हैं, जो भारत में उगाने के लिए उपयुक्त पाई गई हैं.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के केंद्र, पूसा, बिहार में विकसित की गई मुख्य किस्में :

पूसा डेलीशियस : इस के पौधे मध्यम आकार के, जिन में फलत 40-50 सैंटीमीटर ऊंचाई पर आती है. पेड़ की ऊंचाई लगभग 2 मीटर होती है. फल 1.5-2.0 किलोग्राम वजन के सुंदर बड़े नारंगी रंग के और मीठे स्वाद वाले होते हैं.

फलों के गुणों की दृष्टि से यह उत्तम किस्म है. प्रति पेड़ लगभग 50 किलोग्राम फल मिलते हैं. इस के फलों में बीज कम होते हैं. इस के जो भी पौधे उगते हैं, वे या तो मादा होते हैं या उभयलिंगी होते हैं. यह किस्म बिहार क्षेत्र के लिए उपयुक्त पाई गई है.

पूसा मैजेस्टी : इस की पैदावार पूसा डेलीशियस की तरह है. इस के पौधे भी मध्यम आकार के होते हैं, जिस में फलत 40-50 सेंटीमीटर ऊंचाई पर आती है फल मध्यम आकार के 1.25-1.50 किलोग्राम वजन के औसत गुणों वाले होते हैं.

इस की उपज 40 किलोग्राम प्रति पेड़ है. इस के फलों की भंडारण क्षमता अच्छी होती है और दूर के बाजारों में भेजने के लिए उपयुक्त है. इस में पपेन की मात्रा भी अधिक होती है. यह पपीते की गाइनोडायोशियस किस्म है.

पूसा ड्वार्फ : यह अधिक पैदावार देने वाली किस्म है, जिस में फलत भूमि से 25-30 सेंटीमीटर की ऊंचाई से शुरू हो जाती है. फल 1.5-2.5 किलोग्राम वजन के मध्यम श्रेणी के अंडाकार व मीठे होते हैं, प्रति पौधे से लगभग 35 किलोग्राम उपज प्राप्त होती है.

Esta historia es de la edición December 2024 de Farm and Food.

Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.

Esta historia es de la edición December 2024 de Farm and Food.

Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.

MÁS HISTORIAS DE FARM AND FOODVer todo
कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
Farm and Food

कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक

वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.

time-read
4 minutos  |
December 2024
सर्दी की फसल शलजम
Farm and Food

सर्दी की फसल शलजम

कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.

time-read
2 minutos  |
December 2024
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
Farm and Food

राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान

हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.

time-read
6 minutos  |
December 2024
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
Farm and Food

करें पपीते की वैज्ञानिक खेती

पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.

time-read
10+ minutos  |
December 2024
दिसंबर महीने के जरुरी काम
Farm and Food

दिसंबर महीने के जरुरी काम

आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.

time-read
3 minutos  |
December 2024
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
Farm and Food

चने की खेती और उपज बढाने के तरीके

भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.

time-read
6 minutos  |
December 2024
रोटावेटर से जुताई
Farm and Food

रोटावेटर से जुताई

आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.

time-read
2 minutos  |
December 2024
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
Farm and Food

आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर

खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.

time-read
2 minutos  |
December 2024
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
Farm and Food

कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा

बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश

time-read
3 minutos  |
December 2024
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
Farm and Food

गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय

खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.

time-read
3 minutos  |
December 2024