पपीते का ज्यादातर उपयोग जैम, पेय पदार्थ, आइसक्रीम एवं सिरप इत्यादि बनाने में किया जाता है. इस के बीज भी औषधीय गुणों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं. पपीते के कच्चे फल सब्जी के रूप में उपयोग किए जाते हैं.
पपीते के कच्चे, लेकिन परिपक्व पपीते के फलों से निकलने वाले दूध को सुखा कर पपेन बनाया जाता है.
प्रजातियां : भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने अनुसंधान के द्वारा पपीते की अनेक प्रजातियां विकसित की हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के केंद्र पूसा, बिहार, तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर और भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलुरु व पंतनगर विश्वविद्यालय के द्वारा कई प्रजातियां विकसित की गई हैं और कुछ विदेशी प्रजातियां भी हैं, जो भारत में उगाने के लिए उपयुक्त पाई गई हैं.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के केंद्र, पूसा, बिहार में विकसित की गई मुख्य किस्में :
पूसा डेलीशियस : इस के पौधे मध्यम आकार के, जिन में फलत 40-50 सैंटीमीटर ऊंचाई पर आती है. पेड़ की ऊंचाई लगभग 2 मीटर होती है. फल 1.5-2.0 किलोग्राम वजन के सुंदर बड़े नारंगी रंग के और मीठे स्वाद वाले होते हैं.
फलों के गुणों की दृष्टि से यह उत्तम किस्म है. प्रति पेड़ लगभग 50 किलोग्राम फल मिलते हैं. इस के फलों में बीज कम होते हैं. इस के जो भी पौधे उगते हैं, वे या तो मादा होते हैं या उभयलिंगी होते हैं. यह किस्म बिहार क्षेत्र के लिए उपयुक्त पाई गई है.
पूसा मैजेस्टी : इस की पैदावार पूसा डेलीशियस की तरह है. इस के पौधे भी मध्यम आकार के होते हैं, जिस में फलत 40-50 सेंटीमीटर ऊंचाई पर आती है फल मध्यम आकार के 1.25-1.50 किलोग्राम वजन के औसत गुणों वाले होते हैं.
इस की उपज 40 किलोग्राम प्रति पेड़ है. इस के फलों की भंडारण क्षमता अच्छी होती है और दूर के बाजारों में भेजने के लिए उपयुक्त है. इस में पपेन की मात्रा भी अधिक होती है. यह पपीते की गाइनोडायोशियस किस्म है.
पूसा ड्वार्फ : यह अधिक पैदावार देने वाली किस्म है, जिस में फलत भूमि से 25-30 सेंटीमीटर की ऊंचाई से शुरू हो जाती है. फल 1.5-2.5 किलोग्राम वजन के मध्यम श्रेणी के अंडाकार व मीठे होते हैं, प्रति पौधे से लगभग 35 किलोग्राम उपज प्राप्त होती है.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.