आईआईटियन नीरज ठाकुर की मखाने की खेती
Farm and Food|September Second 2022
हम लोग बिहटा से तकरीबन 250 किलोमीटर की दूरी तय कर के मधुबनी पहुंचे नीरज ठाकुर के गांव अकौर में अकौर मखाना उत्पादन के लिए मशहूर है.
लवकुश
आईआईटियन नीरज ठाकुर की मखाने की खेती

छोटेबड़े 70-80 तालाब हैं यहां नीरज ठाकुर की स्कूलिंग नेतरहाट से हुई है. उन्होंने आईआईटी, मुंबई से आगे की पढ़ाई की और ओएनजीसी जैसी प्रतिष्ठित संस्था के लिए तकरीबन 33 सालों तक देश और दुनिया के अलगअलग हिस्सों में काम किया है.

रिटायर होने के बाद नीरज ठाकुर ने गांव में बसने का फैसला किया और पिछले कुछ समय से मखाने की खेती कर रहे हैं. उन्होंने तकरीबन साढ़े 3 एकड़ के प्लाट में मखाने की 3 वैरायटी लगा रखी हैं. बातचीत के दौरान हमें पता चला कि परंपरागत तौर पर मखाने की खेती तालाबों में होती आई है. तालाब में मखाना उत्पादन करना बेहद किफायती रहा है.

अमूमन हर साल मखाना तैयार होने के बाद जब उसे जमीन के अंदर से निकाला जाता है, तब उस के बहुत से फल अंदर ही रह जाते हैं, जो अगले साल के लिए बीज के काम आते हैं. किसान अलग से कुछ खाद और उर्वरक का भी इस्तेमाल नहीं करते. बीज और उर्वरक की बचत के चलते यह खेती कम खर्चीली है.

नीरज ठाकुर मखाने की खेती अपने खेतों में करते हैं. इस के कुछ अपने फायदे हैं, तालाब की अपेक्षा खेतों से मखाना निकालना आसान होता है. कंट्रोल इरिगेशन सिस्टम होने के कारण खेतों में लगाए गए पौधे की बढ़ोतरी बेहतर होती है. इस वजह से उत्पादन में भी वृद्धि होती है. तालाब में होने वाले मखाने का साइज साल दर साल छोटा होता जाता है, वहीं खेतों से निकले मखाने बड़े साइज के होते हैं.

नीरज ठाकुर का मानना है कि किसान अगर थोड़ा सा इन्वैस्टमैंट कर के तालाब की जगह अपने खेतों में मखाने का उत्पादन करें, तो उन्हें फायदा ज्यादा होगा.

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