वैज्ञानिक तरीकों से गेहूं की फसल की सही देखभाल कर के और बीजों के चयन में सतर्कता अपना कर पैदावार को बढ़ाया जा सकता है और इस की उपज से अधिकतम लाभ लिया जा सकता है. इस के लिए जरूरत इस बात की है कि किसान इस के प्रति जागरूक हों.
वैज्ञानिकों की मानें, तो गेहूं की फसल के लिए ऐसी दोमट मिट्टी वाले खेत सही रहते हैं, जहां ज्यादा जलभराव की स्थिति न रहती हो. वैसे, पौधों को संतुलित मात्रा की खुराक देने वाली पर्याप्त खाद दी जाए, तो हलकी जमीन से भी अच्छी पैदावार ली जा सकती है.
गेहूं की बोआई से करीब एक महीने पहले ही प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 4 से ले कर 10 टन तक गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद खेत में डाल देनी चाहिए. इस में 3 किलोग्राम कैलडर्मा व 10 किलोग्राम कैलबहार भी डालना बेहतर होता है.
इस के बाद खेत की जुताई कर के पलेवा कर देना चाहिए. फिर हैरो व टिलर से जुताई कर के पाटा लगा कर खेत को पूरी तरह से समतल कर देना चाहिए. बोआई के वक्त खेत में थोड़ी नमी होना जरूरी है. मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए और खेत में खरपतवार नहीं होने चाहिए.
बीजों का चयन व बोआई
बीजों का चयन जलवायु, बोने के समय व क्षेत्रफल के हिसाब से करना चाहिए. सरकारी उपकेंद्रों व बाजारों में गेहूं की कई तरह की प्रजाति वाले बीज मिलते हैं. सौ फीसदी शुद्ध बीज को उत्तम बीज कहा जाता है.
हर सूरत में प्रमाणित बीज का ही किसानों में को इस्तेमाल करना चाहिए. इस से बेहतर उत्पादन प्राप्त होता है. आमतौर पर 4 तरह के बीज होते हैं, जो प्रजनन बीज, आधारीय बीज, प्रमाणित बीज व सत्यापित बीज कहलाते हैं. हाइब्रिड बीज भी उपलब्ध होते हैं. गुणों का विकास कर के तैयार किए गए बीजों को हाइब्रिड बीज कहा जाता है.
कृषि वैज्ञानिकों की राय में समय के मुताबिक बीजों की किस्मों का चुनाव किया जाना चाहिए. अलगअलग राज्यों में दर्जनों किस्में होती हैं. सिंचित अगेती खेती का समय 15 अक्तूबर से 25 नवंबर तक माना जाता है.
अगेती बोआई के लिए बाजार में जो बीज की किस्में मिलती हैं, उन में एचडी 2329, एचडी 2428, एचडी 2204, पीबीडब्ल्यू 550, एचडी 2733, एचडी 2851, एचडी 2894, सीपीएएन 3004, डब्ल्यूएच 1105, यूपी 2338, डब्ल्यूएच 542, पीबीडब्ल्यू 343 व एचडी 2687 वगैरह शामिल हैं.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.