शिमला मिर्च की खेती को अगर किसान भाई कृषि वैज्ञानिकों द्वारा बताए गए तरीके से करते हैं, तो वे बहुत अच्छा मुनाफा ले सकते हैं.
यदि शिमला मिर्च की उन्नतशील किस्मों की खेती की जाए, तो किसानों को तकरीबन 30 से 50 क्विटल प्रति हेक्टेयर फसल की प्राप्ति हो सकती है. इस के अलावा शिमला मिर्च की खेती हरियाणा, पंजाब, झारखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक आदि प्रदेशों में अच्छी तरह से की जा सकती है.
भूमि का चुनाव
शिमला मिर्च की खेती के लिए चिकनी दोमट मिट्टी, जिस में जल निकासी का अच्छा प्रबंध किया गया हो, उसे सही माना जाता है. मिट्टी का पीएच मान 6 से 6.5 होना चाहिए.
इस के अलावा बलुई दोमट मिट्टी में भी शिमला मिर्च की खेती को सफलतापूर्वक किया जा सकता है, लेकिन तब जब मिट्टी में अधिक खाद व उस के पौधों का समयसमय पर सिंचाई का प्रबंध अच्छे से किया गया हो.
जलवायु और तापमान
शिमला मिर्च की खेती के लिए नम जलवायु की आवश्यकता होती है. इस की अच्छी वृद्धि एवं अच्छी उपज के लिए कम से कम 21 से 25 डिगरी सैंटीग्रेड तक का तापमान अच्छा होता है.
शिमला मिर्च की उन्नत किस्में
इस की किस्मों के नाम कुछ इस प्रकार से हैं:
• अर्का गौरव, • अर्का मोहिनी, • कैलिफोर्निया वांडर, • ऐश्वर्या, • अलंकार, • हरीरानी, • पूसा दीप्ति, • ग्रीन गोल्ड, • भारत, • महाभारत, • एचए 1195, • गोल्डन समर.
उर्वरक प्रबंधन
खेत की तैयारी के समय ही 25 टन गोबर की सड़ी हुई खाद को खेत में मिला देना चाहिए. उस के बाद पौधे की रोपाई के वक्त 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस और 60 किलोग्राम पोटाश को डाला जाता है. 60 किलोग्राम नाइट्रोजन को 2 बार में दिया जाएगा. आधा हिस्सा पौधे की रोपाई के वक्त और दूसरा उस के 55 दिन के बाद देना चाहिए.
बोआई का समय और बीजोपचार
शिमला मिर्च की फसल को सालभर में 3 बार लिया जा सकता है. पहला, जून से जुलाई महीने तक, दूसरा, अगस्त से सितंबर महीने तक और तीसरा, नवंबर से दिसंबर महीने तक.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.