गन्ने की खेती व प्रसंस्करण द्वारा जहां करोड़ों लोगों को रोजगार मिलता है, वहीं दूसरी ओर देश को हर साल 50,000 करोड़ रुपए से भी अधिक का का राजस्व प्राप्त होता है.
यह देखा गया है कि गन्ने की खेती से किसानों की आर्थिक स्थिति में काफी हद तक सुधार हुआ है. एक अनुमान के अनुसार, एक टन मिल योग्य गन्ना प्राप्त करने में प्रति हेक्टेयर खेत से 2.0 किलोग्राम नाइट्रोजन, 0.5 किलोग्राम फास्फोरस, 2.8 किलोग्राम पोटाश, 0.3 किलोग्राम गंधक और 0.03 किलोग्राम लौह तत्त्व का अवशोषण किया जाता है. इस के चलते मिट्टी की उर्वरकता में उपयोगी तत्त्वों का दिनप्रतिदिन नुकसान होता जा रहा है.
वैज्ञानिक अध्ययनों के द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि गन्ने की खेती में जैविक खादों के प्रयोग से जहां मिट्टी की उर्वराशक्ति बरकरार रहती है, वहीं कई पेड़ी फसल भी बिना उत्पादकता घटे प्राप्त की जा सकती है. जैविक खादों के प्रयोग से सभी आवश्यक तत्त्व पौधों को आसानी से प्राप्त हो जाते हैं.
गन्ने में मुख्यतया प्रयोग होने वाली जैविक खादें, गोबर की खाद, मैली की खाद व जैव उर्वरक एसीटोबैक्टर का मिश्रण शामिल है. अध्ययनों से पता चला है कि जैविक खादों के प्रयोग से गन्ने में बहुपेड़ी खेती उपज में बिना गिरावट के सफलतापूर्वक की जा सकती है. इस में देखा गया है कि मिट्टी की भौतिक व रासायनिक संरचना में भी गिरावट नहीं आती है.
एक अन्य अध्ययन के अनुसार पता चला है कि रासायनिक उर्वरकों की तुलना में कार्बनिक खादों के प्रयोग से मिट्टी में एंजाइमों की क्रियाशीलता में लगभग दो गुना तक वुद्धि पाई गई है और उत्पादन भी बढ़ा है.
अतः अब समय आ गया है कि गन्ने की खेती में मिट्टी व फसल दोनों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए जैविक खादों का प्रयोग कर के अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं.
गन्ने की खेती में जैविक खादों का प्रयोग अकेले या जैव उर्वरकों के साथ बावक फसल की बोआई से पहले एवं प्रत्येक पेड़ी फसल को प्रारंभ करते समय करें. इस के लिए कार्बनिक खादों को मिट्टी में अच्छी तरह मिला कर सिंचाई कर देते हैं, ताकि पौधों को पोषक तत्त्व जल्दी से जल्दी प्राप्त हो सकें.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.