कोंडागांव के प्रयोगधर्मी किसान वैज्ञानिक डा. राजाराम त्रिपाठी को हाल ही में देश के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के हाथों देश का सर्वश्रेष्ठ किसान का अवार्ड दिया गया. वैसे तो उन्हें अब तक सैकड़ों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं, किंतु यह प्रतिष्ठित सम्मान उन्हें इसी बहुचर्चित डेढ़ लाख रुपए में तैयार एक एकड़ के 'नैचुरल ग्रीनहाउस' में आस्ट्रेलियन टीक के पेड़ों पर काली मिर्च की लताएं चढ़ा कर एक एकड़ से वर्टिकल फार्मिंग के जरीए 50 एकड़ तक का उत्पादन लेने के सफल प्रयोग के लिए दिया गया.
क्या फर्क है सस्ते 'नैचुरल ग्रीनहाउस' और वर्तमान ‘हाईटैक पौलीहाउस में
पराबैंगनी किरणों से बचाव
पौलीहाउस : यह पराबैंगनी किरणों से ऊपर लगाई गई पौलीथिन शीट की क्षमता के अनुसार एक हद तक बचाव करता है.
नैचुरल ग्रीनहाउस : इस की हरी छतरी भी इस में लगी फसलों का पराबैंगनी किरणों से प्रभावी और जरूरी बचाव करने में भलीभांति सक्षम है.
धूप से बचाव
पौलीहाउस : इस हाउस में लगाई गई फिल्म की क्षमता के अनुसार यह धूप से जरूरी 60 फीसदी या 70 फीसदी तक बचाव करता है, जिस से पौधों को प्रकाश संश्लेषण के लिए ज्यादा समय मिलता है और इस से ज्यादा उत्पादन मिलता है.
नैचुरल ग्रीनहाउस : इस में भी 60 से 70 फीसदी तक वृक्षों से नैसर्गिक छाया मिलती है. यह छाया सूर्य की गति के अनुसार चलायमान रहती है, जिस से प्रकाश संश्लेषण के लिए ज्यादा समय मिलता है और उत्पादन भी ज्यादा प्राप्त होता है.
गरमी, सर्दी, ओला व बारिश से बचाव
पौलीहाउस : इस हाउस में ओलाबारिश से तो बचाव होता ही है, साथ ही एक सीमा तक तापमान को भी नियंत्रित रखा जा सकता है, पर इस काम में नियमित रूप से महंगी बिजली का खर्चा होता है. सोलर लगाने पर सोलर का एकमुश्त खर्चा भी बहुत ज्यादा बैठता है. तेज हवा या तूफान में इस के पूरी तरह नष्ट होने की में सदैव आशंका बनी रहती है.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.