रूफटौप बागबानी पौधों की खेती के लिए खाली छत का उपयोग कर के शहरी पर्यावरण को सुधारने का एक अनूठा अवसर है, जिस से जैव विविधता में वृद्धि, शहरी गरमी का प्रभाव को कम करना, हवा की क्वालिटी में सुधार और साथ ही साथ सतत शहरी जीवन को प्रोत्साहित किया जा सकता है.
कोरोना महामारी के बाद लोगों में सेहत और पर्यावरण को ले कर जागरूकता बढ़ी है. लोग भोजन में बिना कैमिकल, बिना कीटनाशक का प्रयोग किए फलसब्जियों का इस्तेमाल करना चाहते हैं.
छत पर बागबानी के लिए न बहुत ज्यादा मिट्टी और न ही बहुत ज्यादा पानी की जरूरत होती है. छत पर बागबानी में धनिया, पालक, मेथी के साथ टमाटर, लौकी या कोई बेल वाली सब्जी या फिर कोई फल उगाया जा सकता है. सुंदरता बढ़ाने के लिए और परागण के लिए फूलों के पौधे लगाना भी लाभकारी होता है.
मानूसन से प्रभावित और आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय और अर्धशुष्क है, जो विभिन्न प्रकार के पौधों एवं वनस्पतियों के लिए उपयुक्त है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर, 2016 के अध्ययन से पता चला है कि दिल्ली क्षेत्र में छतों का उपयोग बागबानी के लिए उपयुक्त है, जो हरित शहरीकरण की दिशा में एक बेहतरीन कदम हो सकता है. दिल्ली के विकास को नई दिशा देने के लिए मास्टर प्लान 2041 में रूफटौप बागबानी को बढ़ावा देने के लिए नागरिकों को बढ़ावा देते हुए सलाह देने का प्रावधान भी शामिल हैं.
छत पर बागबानी छाया और वाष्पीकरण के जरीए तापमान में कमी के साथसाथ पर्याप्त पर्यावरणीय फायदा भी है. शारदा विश्वविद्यालय और आईआईआईटी, दिल्ली द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन के अनुसार, छत के बगीचे गरमियों में 5-7 डिगरी सैल्सियस तक छत के तापमान को कम कर सकते हैं, जिस से निवासियों के लिए बिजली के बजट में संभावित बचत हो सकती है.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.