किसान नकदी फसल के रूप में अगर शहतूत की नर्सरी तैयार करें और खेती की तरफ कदम बढ़ाएं, तो वे अपने हालात को सुधार सकते हैं. शहतूत की पत्तियों से कीटपालन करने के इच्छुक किसान रोजगार के बेहतर अवसर ले सकते हैं. रेशम कीटपालन करने वालों को शहतूत की पत्तियों की जरूरत पड़ती है. किसान शहतूत की खेती कर कीट पालें, तो वे ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं.
रेशम कीटपालन के व्यवसाय में 50 फीसदी खर्च पत्तियों पर ही हो जाता है, जिस पर रेशम कीट का जीवनचक्र चलता है. इसी जीवनचक्र में ये कीट रेशम के कोए को बनाते हैं. रेशम का कोया 300 से 400 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से आसानी से बेचा जा सकता है.
शहतूत की नर्सरी तैयार करना
हम सभी जानते हैं कि पेड़पौधे लगाने के लिए हमें स्वस्थ पौधों पर आश्रित रहना होता है और हम एक अच्छी नर्सरी से ही अच्छा पौधा प्राप्त कर सकते हैं. शहतूत के पौधे को तैयार करने की अनेक विधियां हैं :
- बीज द्वारा
- ग्राफ्टिंग द्वारा
- लेयरिंग द्वारा
- कटिंग द्वारा
कम लागत में उच्च गुणवत्ता के पौधे कटिंग विधि से ही तैयार किए जाते हैं. उन्नत किस्म के शहतूत की कटिंग तैयार करने के लिए 6 से 9 महीने पुरानी टहनियों को काट लेते हैं और उन टहनियों को छाया में रखते हैं, जिस से कि सूखने न पाएं. फिर टहनियों को 6-8 इंच लंबी 45 डिगरी त्रिकोण पर तेज धार के चाकू या सिकटियर से काट लेते हैं, जिस से सिरे पर टहनियों का छिलका न निकलने पाए.
कटिंग करते समय यह ध्यान रहे कि वहां की टहनी लें, जिस की मोटाई तकरीबन 22 सैंटीमीटर या एक पैंसिल जितनी मोटी हो और उस में 4-5 बड (कली) हों.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.