यह अफसोस की बात है कि जलवायु परिवर्तन के इस दौर में भी कड़ी धूप या कह लिया जाए, 45 से 50 डिगरी सैल्सियस से भी अधिक के तापमान में खेतों में काम कर के, तेज बारिश में फसल की रोपाई कर फसल को बचाने और फसल उगाने की जद्दोजेहद करती महिलाओं की कहानियां लोगों के सामने न के बराबर आ पाती हैं, जबकि ये महिलाएं खेत तैयार करने से ले कर फसल की बोआई, रोपाई, मड़ाई और भंडारण में बड़ी भूमिका में होती हैं.
देश में कई ऐसी महिला किसान हैं, जो बड़े कारपोरेट और बिजनैस घरानों की महिलाओं को भी पीछे छोड़ती नजर आती हैं. उन्हीं महिला किसानों में एक नाम है 10वीं पास संतोष देवी खेदड़ का, जो सीकरझुंझुनूं राष्ट्रीय राजमार्ग से सटे बेरी गांव में रहते हुए महज सवा एकड़ खेत से साल का 30 लाख रुपए मुनाफा कमा रही हैं.
सवा एकड़ खेत से सवा लाख रुपए कमाने की बात हो सकती है. पहली बार सुन कर कुछ अटपटा लगे, लेकिन जब आप उन की खेती की तकनीकी के बारे में जानेंगे, तो आप संतोष देवी के जज्बे को बिना सलाम किए खुद नहीं रहेंगे.
हालात से नहीं मानी हार
संतोष देवी की शादी महज 15 साल की उम्र में साल 1990 में राजस्थान के सीकर जिले के बेरी गांव में एक संयुक्त परिवार में रामकरण खदेड़ से हो गई थी. मन में कई सपने ले कर आई संतोष देवी का शुरुआती दौर तो बहुत अच्छा रहा, क्योंकि उन के पति के दोनों भाई एकसाथ 'थे और वे खेती में रुचि रखती थीं. ऐसे में वे अपना खाली समय खेतों में दे कर अपने खेती के शौक को पूरा करती रहीं.
लेकिन साल 2008 में जब 2 भाइयों की नौकरी लग गई, तो भाइयों ने बंटवारा कर लिया, जिस से उन की माली हालत खराब होने लगी थी, क्योंकि उन के पति रामकरण खेदड़ 3,000 रुपए की मामूली तनख्वाह पर होमगार्ड की नौकरी कर रहे थे, जिस से उन का परिवार चलाना मुश्किल हो गया था.
जब बंटवारे से पहले रामकरण और उन की पत्नी संतोष देवी 5 एकड़ के पुश्तैनी खेत में काम करते थे, तब भी उन की मुश्किल से ही इतनी आमदनी होती थी कि वे परिवार चला पाएं. बंटवारे के बाद अब तो उन के पास केवल सवा एकड़ बंजर जमीन बची थी, जिस पर खेती किया जाना मुश्किल काम था.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.