खरीफ मक्का फसल हानिकारक कीट
तना छेदक ( काइलो पार्टेलस) : मक्का का यह सब से ज्यादा हानिकारक कीट है. इस का अधिक प्रकोप जून से सितंबर महीनों में होता है. इस का आक्रमण पौधा उगने के शीघ्र बाद शुरू हो जाता है.
इस कीट की मादा पत्तियों के निचले हिस्से पर अंडे देती हैं, जिन में से 3 दिन बाद सूंड़ी बाहर निकल कर पत्तियों को खाती हुई गोभ में चली जाती हैं.
पत्तियों पर एक ही लाइन में छोटेछोटे छेदों का होना इस कीट की उपस्थिति जताता है. एक ही पौधे में कई सूंड़ियां खाते हुए तने में चली जाती हैं. फसल की छोटी अवस्था में गोभ सूखने से पौधे की मौत हो जाती है, जिसे 'डैड हार्ट' भी कहते हैं. बड़े पौधों में गोभ नहीं सूखती, पर सूंड़ियां पत्तों पर सुराख बनाती हैं. इस कीट के आक्रमण से मक्का की पैदावार में काफी कमी आती है.
टिड्डा (फुदका या फड़का) : यह भूरे मटमैले रंग का होता है, जो फुदकफुदक कर चलता है और पौधे से रस चूसता है. यह कीट टिड्डा फसल को छोटी अवस्था में ज्यादा नुकसान पहुंचाता है.
सैनिक कीट : इस कीट का प्रकोप कभीकभी सितंबर अक्तूबर महीने में होता है. छोटी सूंड़ियां गोभ के पत्तों को खाती हैं और बड़ी हो कर दूसरे पत्तों को भी छलनी कर देती हैं. इस के प्रकोप से खेतों में इस का मल पत्तों पर आमतौर पर देखा जाता है. पत्तियों के अलावा यह मक्का के भुट्टे को भी नुकसान पहुंचाता हैं. यह कीट अकेले या झुंड में भी आक्रमण करता है.
बालों वाली सूंड़ियां (कातरा) : कातरा भी कभीकभी आक्रमण करता है. इस कीट की सूंड़ियों के शरीर पर लंबे गुच्छेनुमा बाल होते हैं. छोटी अवस्था में निचली सतह पर इकट्ठा रहती हैं व बड़ी हो कर ये सारे खेत में फैल जाती हैं. शिराओं को छोड़ कर सारा भाग खा जाती हैं और नुकसान करती हैं.
इस कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए अंडों के समूहों व छोटी सूंड़ियों के समूह वाले पत्तों को तोड़ कर नष्ट कर दें. बड़ी सूंड़ियों को पैरों तले कुचल कर या मिट्टी के तेल में डुबा कर भी मारा जा सकता है.
सलेटी सूंड़ी : यह सूंड़ी हलके सलेटी रंग की होती है. यह पत्तियों को किनारों से खा कर अगस्त से अक्तूबर महीने तक नुकसान करती है. इस का आक्रमण कभीकभी व कम मात्रा में होता है.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
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खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
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