सरसों की फसल किसानों के लिए बहुत ही लाभकारी है. इस से कम लागत में अधिक आमदनी हासिल होती है. सरसों स में 35-40 फीसदी तेल प्राप्त होता है और अवशेष के रूप में खली प्राप्त होती है. सरसों का तेल खाने के लिए बहुत ही उपयोगी होता है. यह खून में कोलेस्ट्रॉल को काबू में रखता है.
सरसों का तेल निकालने के बाद खली को पशुओं के लिए एक पौष्टिक आहार के रूप में उपयोग में लाया जाता है, जिस से दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ता है. खली को जैविक खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है.
सरसों उत्पादन की उन्नत तकनीक एवं नवीनतम प्रजातियों को अपना कर सरसों के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है. एमिटी कृषि प्रसार सेवा केंद्र, एमिटी विश्वविद्यालय, नोएडा द्वारा सरसों अनुसंधान, सेवर, भरतपुर के सहयोग से उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर एवं बुलंदशहर जिलों में पिछले 6 सालों से किसानों के खेतों पर सरसों के प्रथम पंक्ति प्रदर्शनों का आयोजन किया जा रहा है.
सरसों उत्पादन की तकनीक
खेत की तैयारी : खेत की एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से कर के पाटा लगा कर भुरभुरा बना लेना चाहिए.
प्रजाति का चयन : सरसों की अनेक उन्नत प्रजातियां हैं, जो अच्छा उत्पादन देती हैं जैसे पूसा - 28, पूसा विजय, पूसा - 25, पूसा- 26, आरएच-725 आदि.
बीजों का शोधन : बीजजनित रोगों से सुरक्षा के लिए 2.5 ग्राम थिरम या ट्राइकोडर्मा विरिडी / हारजिएनम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोआई करें. मैटालैक्सिल 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज शोधन करने से कीट एवं रोग की प्रारंभिक अवस्था में रोकथाम हो जाती है.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.