
कुम्भ पर्व सिर्फ भारत में ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में किसी धार्मिक प्रयोजन हेतु भक्तों का सबसे बड़ा संग्रहण माना गया हैं। इस पावन अवसर पर हजारों श्रद्धालु एक स्थान पर एकत्रित होकर स्नान करते हैं। कुम्भ का पर्व प्रत्येक तीन वर्षों के अंतराल में हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग और नासिक में लगता है तथा हर 12 वर्ष के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है। वहीं हरिद्वार और प्रयाग में दो कुम्भ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुम्भ भी होता है। वर्षों से बेहद हर्षोल्लास से मनाए जाने वाले इस धार्मिक पर्व कुम्भ के इतिहास के बारे में कुछ भी ठीक-ठीक कह पाना थोड़ा में मुश्किल है लेकिन इतिहास में कुम्भ के मेले का सबसे पुराना उल्लेख महाराजा हर्ष के समय का मिलता है, जिसको चीन के प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु हेनसान ने ईसा की सातवीं शताब्दी में आंखों देखी वर्णन का उल्लेख किया है। इस पौराणिक कथाओं के बारे में तो बहुत कुछ सुना व पढ़ा गया है लेकिन इसके ज्योतिषी महत्त्व से अभी तक लोग अनजान है। तो चलिए जानते हैं कुम्भ का ज्योतिषीय महत्त्व -
समय का है विशेष महत्त्व
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क्यों पड़ती हैं चेहरे पर झुर्रियां
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धरती का बैकुंठ है पुरी का जगन्नाथ धाम
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ऊर्जा का रूपांतरण
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