पिता को जीवन पर्यन्त तमाम उत्तरदायित्वों का निर्वहन करना पड़ता है। यह करना आवश्यक भी होता है। पिता यदि किसी वजह से जल्द मौत को प्राप्त हो जाता है, तो कुछ उत्तरदायित्व, जो उसे अपने जीवनकाल में अवश्य पूरे करने चाहिए थे, वह नहीं हो पाते हैं। इन उत्तरदायित्वों के पूरा करने की जिम्मदारी उसके पुत्रों पर आ जाती है। यह ठीक वैसा ही है कि एक पिता अपने द्वारा लिया गया कर्ज चुकाने से पहले ही स्वर्ग सिधार जाता है और शेष कर्ज उसके पुत्रों को चुकाना पड़ता है। यही पितृदोष कहलाता है। अर्थात् पूर्वजों द्वारा छोड़ा गया ऋण। इस बात का महाभारत में भी उल्लेख मिलता है कि पाण्डवों की गलती का परिणाम उनकी पत्नी द्रोपदी को भुगतना पड़ा था। पितृदोष एक ऐसा अदृश्य अवरोध है, जो जिस व्यक्ति के जीवन में आ जाए, उसका जीवन अत्यधिक दुःख से गुजरने लगता है। जब पितृदोष के कारण परेशानियां होती हैं, तो व्यक्ति अपने जीवन में चाहे जितने ही प्रयास क्यों नहीं कर ले, उसे प्रसन्नचित्त नहीं बना सकता। यदि पहले से ही सर्वसंपन्नता है, तो भी जीवन में कोई ऐसी समस्या उत्पन्न हो जाती है, जिससे जीवन निरर्थक लगने लगता है। जीवन के प्रति मोह कम होता चला जाता है। अनेक मर्तबा तो समस्त क्षेत्रों में भारी असफलता का मुकाबला करना पड़ता है, इसलिए पितृदोष होना एक अभिशाप की भांति है।
पितृदोष के लक्षण
पितृदोष के कारण ऐसे लोग विभिन्न प्रकार के दुःख, संताप भोगने पर मजबूर हो जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को विवाह बाधा, एकांतिक जीवन, हीनता, रोगी, निर्धन जीवन तथा कलंकित जीवन जीने पर विवश होना पड़ता है। विभिन्न प्रकार के ज्ञात एवं अज्ञात शत्रु इन्हें विविध भांति के दिक्कत पहुंचाने का प्रयास करते रहते हैं।
ज्योतिषीय दृष्टि से पितृदोष - ज्योतिष शास्त्र के अनुसार निम्न ग्रह स्थिति और युतियों के उपस्थित रहने पर पितृदोष माना जाता है-
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