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सुगंध की संस्कृति
Aha Zindagi
|March 2025
इत्र बनाने वाले कारीगर अपने अनुभव और परंपरा से इसमें गुलाब की नज़ाकत, चंदन की शांति और केवड़े की ताज़गी घोलते हैं, जिससे यह सिर्फ़ एक महक नहीं, एक एहसास बनकर उभरता है।

क़ुदरत के नायाब तोहफ़ों और पारंपरिक हुनर की बारीकियों में छुपा है इस ख़ुशबू का राज़!
जभी इत्र की बात आती है, एक सुखद अहसास मन में जाग उठता है। इसकी सुगंध न केवल इर्द-गिर्द के वातावरण को महकाती है, बल्कि मन और आत्मा को भी सुकून देती है। भारत में इत्र निर्माण की परंपरा हज़ारों साल पुरानी है। यह सिर्फ़ सुगंध नहीं संस्कृति, आध्यात्मिकता और परंपराओं का संगम है। आज भी जब कन्नौज की गलियों से गुजरते हैं, तो हवा में घुली मनमोहक महक अतीत की ओर खींच ले जाती है। लेकिन क्या कभी सोचा है कि ये ख़ुशबू कहां से आई? इसका इतिहास क्या है? और इसे बनाने की प्रक्रिया कैसी होती है?
इतिहास के पन्नों में है यह सुगंध
Esta historia es de la edición March 2025 de Aha Zindagi.
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