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भंग - भवानी और भोजन वीर...
Aha Zindagi
|March 2025
मथुरा के चौबों के भांग और भोजन के संबंध में कुछ कपोल-कल्पित कथाएं हो सकती हैं, किंतु कुछ ऐसे प्रामाणिक संस्मरण भी उपलब्ध हैं जिन्हें अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं कहा जा सकता है।

होली का नाम आते ही मन-मस्तिष्क में चित्र उभरता है ब्रज की होली का, देश-विदेश में प्रसिद्ध राधा-कृष्ण की प्रेम प्रतीति-परिपूर्ण ब्रज की होली का। ब्रज में वसंत पंचमी से ही होली का प्रारंभ हो जाता है। सर्वप्रथम राधारानी के मेले के पश्चात बरसाने की लठमार होली, उसके अगले दिन नंदगांव की लठमार होली, फिर रंग-भरनी एकादशी, होलिका दहन के दिन फालैन और जटवारी गांवों में जलती होली में निकलते पंडे, दाऊजी-जाव आदि के हुरंगे और फिर सैकड़ों दीपकों से जगमगाता चरकुला नृत्य। होली के बाद भी चलती रहने वाली ब्रज की होली वसंत पंचमी के 50वें दिन समाप्त होती है।
ब्रज की होली के इन इंद्रधनुषी रंगों के साथ रस की भी प्रधानता रहती है। यह रस होता है भोग और राग का जो ब्रज की संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। होली के हर पर्वोत्सव में गीत-रस बरसता है और साथ में भांग (विजया) ठंडाई तथा चकाचक मिठाई। ब्रज की भोग संस्कृति अर्थात भोजन-संस्कृति के मुख्य उपासक हैं मथुरा के चौबे। भोजन-प्रियता के कारण भोजन-भट्ट अथवा भोजन वीर के रूप में मथुरा के चौबों की विशिष्ट ख्याति रही है। भोजन के साथ भांग का भी अनन्य संबंध रहा है और मथुरा के चौबे चौंका देने वाली मात्रा में भांग पीने और मिठाइयां खाने में प्रसिद्ध रहे हैं।
Esta historia es de la edición March 2025 de Aha Zindagi.
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