भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आइआरडीएआइ) ऐसे तरीकों की खोजबीन कर रहा है जिससे नई बीमा पॉलिसी दिसंबर 2022 से डीमटेरियलाइज्ड या अभौतिक रूप में जारी करना अनिवार्य बन सके. जहां बीमाकर्ता और अन्य हितधारक इस फैसले पर सोच-विचार कर रहे हैं, डीमैट रूप में बीमा नई बात नहीं है. अभौतिक रूप में बीमा पॉलिसी की अवधारणा 2013 में आई, जब सीएएमएस रिपॉजिटरी, कार्वी, एनएसडीएल डेटाबेस मैनेजमेंट (एनडीएमएल) और सेंट्रल इंश्योरेंस रिपॉजिटरी ऑफ इंडिया सरीखी रिपॉजटरी ने ई- बीमा खाते (ई-आइए) खोलने में सुगमता के लिए व्यवस्थाएं कायम की.
हालांकि अनिवार्य बनाए जाने के बाद शेयर पूंजी के डीमैट रूप ने व्यापक स्वीकृति के साथ जिस तरह उड़ान भरी, उसके विपरीत इंश्योरेंस रिपॉजिटरी (आइआर) की किस्मत उतनी नहीं चमकी. दरअसल, शुरुआत में पांच रिपॉजिटरी थीं, जिनमें एसएचसीआइएल भी थी जिसने बाद में उत्साहहीन प्रतिक्रिया के कारण अपना लाइसेंस छोड़ दिया. चूंकि पॉलिसी धारकों के पास भौतिक या डिजिटल रूप में पॉलिसी रखने का विकल्प था, उन्होंने इसे भौतिक रूप में रखना चुना, खासकर जब बिचौलियों और बीमाकर्ताओं ने डिजिटल रूप में पॉलिसी रखने पर विचार करने में पॉलिसी धारकों की इसलिए कोई मदद नहीं की क्योंकि जब भी पॉलिसीधारक डीमैट रूप में अपनी पॉलिसी रखना चाहता है, तब हर बार बीमाकर्ता को प्रति पॉलिसी एक लागत चुकानी होती है. इन लागतों के बारे में हर किस्म के लेन-देन के लिए आइआर और बीमाकर्ता के बीच सहमति बनी और ये लागतें लेन-देन के परिमाण के आधार पर अलग-अलग होतीं.
बीमा रिपॉजिटरी कैसे काम करती हैं
अभौतिक रूप देने का मतलब भौतिक बीमे को डिजिटल रूप में बदलना है. यह आइआर का काम है कि वह बीमा पॉलिसी को इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखे और तेजी तथा सटीकता से बीमा पॉलिसी में बदलाव, रूपांतरण और संशोधन करे. बीमाकर्ता की तरफ से बीमा पॉलिसियों का डेटा इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखने के लिए आइआर को आइआरडीएआइ की तरफ से पंजीकरण प्रमाणपत्र दिया जाता है. बीमा कंपनियां ग्राहक की पॉलिसी के ब्योरे आइआर के पोर्टल पर अपलोड कर सकती हैं ताकि ग्राहक ई-आइए की मदद से उन्हें देख सके.
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