भाजपा
इलियासी ने ये विचार तब व्यक्त किए जब भागवत ने दिल्ली की एक मस्जिद का दौरा किया और वे एक मदरसे में भी गए. उन्होंने कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों से करीब एक घंटे बातचीत की. इन मुलाकातों के बाद संघ प्रमुख ने कहा कि सभी हिंदुओं और मुसलमानों का डीएनए एक ही है. संघ प्रमुख ने इसके पहले भी हिंदू और मुस्लिम समाज के बीच आपसी समरसता की बात की है.
जुलाई की शुरुआत में भाजपा कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि भाजपा का विस्तार हर वर्ग तक करते हुए पसमांदा मुसलमानों को अपने साथ जोड़ा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह वर्ग पिछड़ा हुआ है और इसे भी विकास की मुख्यधारा में लाया जाना चाहिए. उन्होंने इस वर्ग के लिए 'स्नेह यात्रा' निकालने का भी आह्वान किया. इसके बाद पार्टी स्तर पर पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने की गतिविधियां भी हुईं. दिल्ली प्रदेश भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा ने 'पसमांदा मुस्लिम स्नेह मिलन और सम्मान समारोह आयोजित किया.
भागवत से जो मुस्लिम बुद्धिजीवी मिलने गए थे, उनमें पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस. वाइ. कुरैशी भी थे. वे कहते हैं, "मुस्लिम समाज में बने असुरक्षा के माहौल को लेकर हमने इस बातचीत की पहल की थी. इसमें मोहन भागवत ने साफ कहा कि हिंदुत्व एक समावेशी अवधारणा है और इसमें सभी समुदायों के लिए समान स्थान है." संघ प्रमुख की इस पहल को मोदी के उस 'आह्वान' से जोड़कर देखा जा रहा है. दरअसल, जिस तरह हिंदू समाज में सोशल इंजीनियरिंग करके भाजपा ने कुछ जातियों में अपनी मजबूत पकड़ बनाई, उसी तरह मुस्लिम समाज में जातिगत अंतर का फायदा उठाकर भाजपा इस समाज में सोशल इंजीनियरिंग करने की रणनीति पर काम कर रही है.
मोटे तौर पर देखें तो मुस्लिम समाज में अशराफ को अगड़ा माना जाता है. अनुमान के मुताबिक, कुल मुस्लिम आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 15 फीसद है. राजनीति से लेकर हर प्रमुख क्षेत्र में इनका प्रतिनिधित्व अधिक है. बाकी 85 फीसद अजलाफ हैं और अब इन्हें ही आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक पिछड़ेपन की वजह से पसमांदा कहा जा रहा है. पसमांदा मुस्लिम मुखर होकर अब अपनी हिस्सेदारी मांग रहे हैं. भाजपा और संघ की नजर मुसलमानों की इसी आबादी पर है.
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