मुंबई के जुहू - पिन कोड 400049-में दो इमारतें हैं जिन्हें भारतीय सिनेमा का मक्का मानना चाहिए. ये इमारतें अपने आप में महान श्रद्धा या सम्मान नहीं जगातीं, न ही उनसे ऐसा आभामंडल झलकता है जो उच्च तबकों के धनी-मानी मोहल्ले के बंगलों से कथित तौर पर झलकता है. लेकिन किसी पूजास्थल की तरह बात उन लोगों की है जो उसके भीतर रहते हैं. फिल्म दर्शकों की एकाधिक पीढ़ियां इस शख्स से इस कदर सम्मोहित रही हैं कि उसने एक अलौकिक हैसियत हासिल कर ली लगती है. यहां बाहर सड़क पर गाड़ियां धीमी हो जाती हैं ताकि सवारियां फटाफट तस्वीर खींच सकें, भले ही वह महज लकड़ी के प्रवेशद्वार की तस्वीर हो. पैदल यात्री ठहरकर विशाल मटके से दो घूंट पानी पीते हुए खुद को तरोताजा करते हैं और फिर यह प्रार्थना कि किसी तरह चमत्कार हो और उनके दर्शन हो जाएं. सफारी पहने सतर्क मर्द पिर-पिर्र सीटियां बजाते हैं ताकि भीड़ इकट्ठी न हो. कोई फायदा नहीं. भीड़ हमेशा बनी रहती है, खासकर शाम को. 1976 से 2000 के दशक तक यह नजारा प्रतीक्षा पर दिखता था, अब जलसा पर. नजदीक ही जनक भी है, एक किस्म का दफ्तर, जो नजरों से चूक गया है. यह शायद हैरानी की बात भी नहीं क्योंकि यह मूलतः घर ही है जहां श्रद्धालु नजदीक होने का जादू महसूस करते हैं. वे जिस हीरो की पूजा के लिए आए हैं वह यहीं रहता है: नाम है अमिताभ बच्चन.
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