नजरिया
दुनिया भर में हर मुल्क बढ़ती अनिश्चितता और बेरहम किस्म के तेज बदलावों से जूझ रहा है. चीन भी अपवाद नहीं है. वह ज्यादा चुनौतीपूर्ण माहौल के लिए उपयुक्त रणनीति का निर्माण और उसे लागू करने की तैयारी कैसे कर रहा है?
चीन में पार्टी और सरकार के शीर्ष नेता शी जिनपिंग को इन पदों पर कम से कम और पांच साल बने रहने के लिए कांग्रेस की मंजूरी मिलने की पूरी संभावना है. वे माओ त्से तुंग के बाद चीन के सबसे ताकतवर नेता तो बन ही गए हैं, कांग्रेस से पहले चल रही चर्चाओं से यह भी संकेत मिलता है कि वे और ज्यादा सत्ता तथा अधिकार हासिल करने में जुटे हैं. प्रतिष्ठा और सत्ता में उन्हें माओ के बराबर रखने की कोशिशों से इसकी झलक मिलती है. मसलन, खबरें आईं कि शी को पार्टी चेयरमैन बनाया जा सकता है, यानी वह पद जिसे कि 1982 में देंग श्याओ पिंग के अधीन तिलांजलि दे दी गई थी. वे माओ के नेतृत्व में सबसे ऊंची पहचान बन चुके एक नेता के इर्द-गिर्द विकसित पर्सनैलिटी कल्ट को खारिज करके ज्यादा सामूहिक नेतृत्व चाहते थे. पार्टी का संविधान पहले ही शी को पार्टी के असाधारण विचारक की मान्यता देता है. उनके विचारों को "नए युग में चीनी विशेषताओं वाले समाजवाद पर शी जिनपिंग के विचार" के तौर पर संविधान में प्रतिष्ठापित किया गया है. इस मुहावरे को ज्यादा सारगर्भित "शी जिनपिंग के विचार" से बदला जा सकता है. ऐसा करना उन्हें माओ के समकक्ष रखना होगा, जिनके विचार "माओ त्से तुंग के विचार" के तौर पर पिरोकर रखे गए हैं. पार्टी मीडिया शी का जिक्र उन्हें "कर्णधार" या "खेवनहार" कहकर करने लगा है, जो माओ को कहा जाता था. साफ है कि पार्टी कांग्रेस के बाद हमें चीन के ज्यादा ताकतवर, विचारधारा की तरफ ज्यादा झुके और ज्यादा हठधर्मी नेता की उम्मीद करनी चाहिए.
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