वैसे देखा जाए तो इसे गर्भ में संजोने से लेकर जन्म देने तक में उस समय अपने वर्चस्व पर इतराते रहे फिल्म संगीत की ही अहम भूमिका रही. और अपने तेज मिजाज और डिस्को धड़कन के साथ नई शैली अब फिल्म संगीत को टक्कर देने को तैयार थी. जीनत अमान और फिरोज खान से बेहद प्रभावित लंदन में बसे एक प्रवासी ने फिल्म कुर्बानी के लिए कर्णप्रिय मधुर संगीत तैयार किया. नाजिया हसन उस समय केवल 15 वर्ष की थीं और उनकी आवाज में कराची की हवा जैसा खारापन था. लंबे बाल और चमड़े के परिधान पहनने वाले कुर्ग मूल के बिड्डू अपने डिस्को म्यूजिक की वजह से उस समय तक वैश्विक स्तर पर कुछ-कुछ पहचान बना चुके थे. उनके पहले ही गाने 'आप जैसा कोई' ने हर तरफ हलचल मचा दी थी. ऐसा लग रहा था कि मानो बॉलीवुड जैसे तवे पर कुछ पक रहा है, जिसमें विदेशी तड़का लगा है।
क्या आप जानते हैं? 1998 में मैग्नासाउंड ने दलेर मेहंदी को दो साल के अनुबंध के लिए 2.75 करोड़ रुपए का भुगतान किया, जो भारत में किसी गायक के लिए अब तक का सबसे बड़ा सौदा था.
नाजिया की आवाज करण जौहर की स्टुडेंट ऑफ द ईयर के लिए 'द डिस्को साँग' में बतौर नमूना ली गई थी. आलिया भट्ट ने इसी फिल्म से बॉलीवुड में कदम रखा था.
लेकिन घर के बने शुद्ध मसालों जैसा सोंधापन भी है. नाजिया की दमदार आवाज और बिड्डू के सिंथेसाइजर आधारित ऑर्केस्ट्रा से निकला मधुर - लयबद्ध संगीत हवा के एक नए झोंके जैसी सनसनाहट उत्पन्न कर रहा था. भारत पूरी तरह मंत्रमुग्ध हो चुका था. इतनी बड़ी सफलता से उत्साहित होकर दोनों फिर से यह जादू दोहराना चाहते थे लेकिन फिल्म से इतर. नतीजा, डिस्को दीवाने (1981) के रूप में सामने आया. इसमें भी वही शैली अपनाई गई, और चार बाई चार की डिस्को ग्रिल पर तड़कती - भड़कती धुन ने पूरे उपमहाद्वीप में तहलका मचा दिया. जुनून ऐसा कि प्लैटिनम, डबल प्लैटिनम, रिकॉर्ड बिक रहे और जहाजरानी डिपो से प्रतियां चोरी तक होने लगी थीं. ऐसे दीवानगी भरे माहौल के बीच ही भारतीय पॉप ने आकार लिया.
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