पिछले साल जब 38 वर्षीय ड्यू डिलिजेंस एक्सपर्ट प्रफुल्ल शर्मा अपने दो लोगों के परिवार के लिए नई कार खरीदने निकले, तो हैचबैक कार शायद उनकी सारी जरूरतें अच्छी तरह पूरा करती. मगर कोविड महामारी के दो साल उनके ऊपर अमिट छाप छोड़कर गुजरे. उन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया, जिनमें कुछ तो उनसे छोटे थे. शर्मा की तरह ऐसी ही स्थिति से दो-चार कई दूसरों ने अपने को अजीब-सी भावना में डूबते-उतराते पाया: वाइओएलओ, या योलो, यानी यू ओनली लिव वंस (जिंदगी बस एक बार मिलती है) के पहले अक्षरों से बना छोटा शब्द. इसी भावना के चलते वे बेहतर कल के लिए बचत करने के मध्यवर्गीय स्वभाव के खिलाफ चले गए और उसके बजाय उन्होंने बेहतर आज के लिए खर्च करने का विकल्प चुना. शर्मा ने छह लाख रुपए में होंडा की नई लॉन्च कार एलीवेट का ऑटोमेटिक संस्करण खरीदा. यह रकम उससे कहीं ज्यादा थी जो उन्होंने हैचबैक के लिए चुकाई होती.
योलो की इस तड़प को पूरा करना 'प्रीमियमाइजेशन' या प्रीमियमीकरण का रुझान है, जो पिछले कुछ समय से भारतीय अर्थव्यवस्था में दिख रहा है, हालांकि हाल के दिनों में इसमें काफी तेजी आई है. दौलतमंदों के विलासित की वस्तुएं खरीदने पर तो कभी कोई हैरानी नहीं रही. बदलाव यह आया है कि भारतीय मध्यम वर्ग अपनी बढ़ती आकांक्षाओं के आगे घुटने टेक रहा है और मौजूदा पल में जी रहा है. इसकी वजह से उस चीज में जबरदस्त इजाफा हुआ है जिसे 'मास्टिज' सेक्शन कहा जाता है, यानी मिड-मार्केट और सुपर प्रीमियम श्रेणियों के बीच की जगह घेरने वाले उत्पाद. इसलिए मकान हो या कार, रेफ्रिजरेटर या टेलीविजन, छुट्टियां या बाहर खाना, भारतीय उपभोक्ता आम ढर्रे की चीजों से मानने को तैयार नहीं है.
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