कई देशों ने पिछले दशकों में मध्य आय से उच्च आय का स्तर हासिल किया है. उन्हें या तो बड़े यूरोपीय बाजार में शामिल होने से फायदा हुआ या फिर वे तेल और गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न थे. इसके कुछ उल्लेखनीय अपवाद दक्षिण कोरिया, ताइवान और इज्राएल जैसे देश हैं जो आरएंडडी और इनोवेशन के समर्थन से मैन्युफैक्चरिंग की बदौलत मध्य आय के चंगुल से बचे रहे. कुछ देशों ने जिंस निर्यात या मैन्युफैक्चरिंग का इस्तेमाल किया और कुछ समय तक बेहतर किया लेकिन आखिरकार फंस गए. इस पृष्ठभूमि में भारत को समृद्धि की अपनी राह खुद बनानी होगी, जहां मैन्युफैक्चरिंग अहम भूमिका निभाएगा. फिर भी, यह बहुआयामी कहानी होनी चाहिए जिसमें वृद्धि समावेशी और टिकाऊ हो. हमको आधुनिकतम इनोवेशन पर आधारित वैल्यू चेन अपनानी होगी लेकिन इसके साथ श्रम बहुल उद्योग भी जरूरी होंगे जो युवाओं को लाभ के साथ रोजगार दे सकें.
भू-राजनीति और कोविड की वजह से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में हुए व्यवधानों के चलते देशों और कारोबारों ने 'चीन-प्लस वन' की रणनीति अपनाई है, यानी एशियाई दिग्गज के विकल्प की तलाश. हालांकि अकेला भारत ही नहीं होगा जो चीन के 'प्लस वन' के लिए होड़ करेगा. मैन्युफैक्चरिंग में बड़ा खिलाड़ी बनने के लिए हमें लागत गुणवत्ता, उपभोक्ता सेवा, पूंजी उत्पादकता, इनोवेशन और ब्रांडिंग के रूप में वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनने में सक्षम होना होगा.
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