एक दिन पहले यानी 16 नवंबर को ही उन्होंने तनखैया (धार्मिक कदाचार की सजा) घोषित किए जाने के मुद्दे पर चर्चा के लिए सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था अकाल तख्त जत्थेदार रघुबीर सिंह से मुलाकात की थी.
यह सब 30 अगस्त को उस वक्त शुरू हुआ जब रघुबीर सिंह ने पार्टी के 20072017 के बीच सत्ता में रहने के दौरान कथित कदाचारों को लेकर सुखबीर को तनखैया घोषित करने के लिए सभी तख्तों के पांच प्रमुख सिंह साहिबान की एक बैठक की अध्यक्षता की. हालांकि, बतौर तनखैया उनकी सजा की घोषणा नहीं की गई. मामला अटकना सुखबीर की साख के लिए नुक्सानदायक साबित हुआ. इस्तीफे से अब नए पार्टी प्रमुख के चुनाव का रास्ता साफ हो गया है (पिछले तीन दशक में बादल परिवार के अलावा कोई और पार्टी प्रमुख नहीं रहा). छह बार मुख्यमंत्री रहे दिवंगत प्रकाश सिंह बादल ने 13 साल अध्यक्ष रहने के बाद 2008 में बेटे सुखबीर को कमान सौंपी थी.
अब दिसंबर में वार्षिक अधिवेशन होने के साथ ही शिरोमणि अकाली दल को नया पार्टी प्रधान मिलने की संभावना है. लेकिन बागी पहले ही चेता चुके हैं कि बादल को फिर से कमान सौंपने की किसी कोशिश को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. 10 नवंबर को सुखबीर बादल ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के नए प्रमुख हरजिंदर सिंह धामी को तनखैया मुद्दा सुलझाने के लिए पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बलविंदर सिंह मूंदड़ और जत्थेदार रघुबीर सिंह के बीच बैठक कराने का जिम्मा सौंपा था.
यह चुनौती दोहरी है क्योंकि धार्मिक और राजनैतिक सिख संस्थाएं साख के संकट से जूझ रही हैं. एक तरफ जहां सुखबीर बादल की अगुआई वाले अकाली दल ने पंजाब में पंथिक समुदाय का भरोसा गंवा दिया है-उसके पास 117 सदस्यीय विधानसभा में महज दो विधायक हैं तो दूसरी तरफ सिख संस्थाओं की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ रहे हैं. अकाली दल के साथ-साथ इस बात की भी आलोचना हो रही है कि कैसे सिर्फ बादल परिवार के बफादार ही तख्तों के जत्थेदार या एसजीपीसी प्रमुख बन रहे हैं.
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