1998 के एटमी परीक्षण
अठारह मई 1974 को ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा यानी 'शांतिपूर्ण एटमी परीक्षण' ने वैश्विक यथास्थिति को बदलकर रखा दिया और भारत एटमी परीक्षण करने वाला ऐसा पहला देश बन गया जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य नहीं था. परमाणु विखंडन वाले इस बम ने भारत को विशिष्ट एटमी क्लब में शामिल करा दिया और एक बेहद जरूरी प्रतिरोधक क्षमता प्रदान की.
लेकिन एटमी वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की कड़ी मेहनत का नतीजा सही मायने में 24 साल बाद ठीक उसी जगह यानी राजस्थान में सेना की पोकरण परीक्षण रेंज में 11 और 13 मई, 1998 को सामने आया. पांच एटमी परीक्षणों की श्रृंखला ऑपरेशन शक्ति ने भारत की उन्नत एटमी हथियारों (200 किलोटन तक क्षमता वाले विखंडन और थर्मोन्यूक्लियर हथियार ) को डिजाइन करने और विकसित करने की क्षमता को प्रदर्शित किया. यह एटमी प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कई वर्षों के स्वदेशी अनुसंधान का नतीजा था. इसके बस दो ही हफ्ते बाद 30 मई को पड़ोसी पाकिस्तान ने भी एटमी परीक्षण कर डाला.
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