अहमदाबाद से भुज तक की उड़ान छोटी है, लेकिन अगर किसी वजह से विमान उड़ान नहीं भर पाता, जैसा कि हमारे मामले में हुआ, तो देश के सबसे बड़े जिले कच्छ की सड़क यात्रा में एक दिन के कामकाज के घंटे लग जाते हैं-कम से कम आठ घंटे. अगर किसी के पास खाली वक्त है, तो रास्ते में देखने के लिए बहुत कुछ है: बारीक नक्काशीदार मोढेरा सूर्य मंदिर, 11वीं सदी की बावली रानी की वाव, जो हमारे 100 रुपए के नोटों पर दिखाई देती है, और सड़क के किनारे एक आकर्षक मंदिर जहां भक्तगण एक प्यासे भगवान को पानी की बोतलें चढ़ाते हैं. फिर बोतलों को एक तरफ रख दिया जाता है, जहां आने वाले लोगों को बोतलों का ढेर और जाहिर है, प्लास्टिक प्रदूषण नजर आता है.
हाइवे के रेस्तरां स्वादिष्ट थेपला बन मस्का, ढोकला, मीठी चाय और ताजा संतरे की जलेबी परोस रहे थे. ड्राइव के कुछ घंटे बाद, तेल, गैस और माल ढोने वाले ट्रक हमारे पास से गुजरते हुए जामनगर की दिशा बताने वाले संकेतों की ओर निकल गए. अहमदाबाद की इमारतों की जगह धीरे-धीर सूखी जमीन नजर आने लगीं, जहां तेज धूप बकरियों के झुंड और चरवाहों पर लेजर टैग की तरह चमक रही थी.
यह सफर कार के जिद्दी ब्लूटूथ सिग्नल से भरा हुआ था, जो मेरे फोन और जिगर भाई नामक एक बातूनी ड्राइवर के जाल में फंसने से इनकार कर रहा था. जिगर भाई बीच-बीच में सोमनाथ और द्वारका जैसे स्थलों के आसपास पर्यटकों को लाने-ले जाने वाले अपने ड्राइवर दोस्तों के नेटवर्क से बात करने लगते थे, वे कभी-कभी अपने राज्य की सड़कों की हालत पर आहें भरते थे. उन्होंने अपनी जीभ को चटकाते हुए कहा, "राजस्थान में बेहतर सड़कें हैं."
हम सड़क यात्रियों को घंटों तक उत्साहित रखने वाले गीतों की रचना करने के ए. आर. रहमान की बेहतरीन कोशिशों के बावजूद आखिरकार थकान तारी होने लगी. बाद में उस शाम को धोरडो गांव में व्हाइट रण टेंट सिटी की चमकदार रोशनी ने ही मेरी उनींदी आंखों को खोला, हॉस्पिटेलिटी ग्रुप इवोक एक्सपीरियंस की ओर से संचालित यह टेंट सिटी, लहराते झंडों से भरी हुई थी और लोग शाम , के हाट में लगने वाली दुकानों में आ-जा रहे थे. वे दुकानों में स्थानीय हथकरघों पर अपनी उंगलियां फेरते थे या टेराकोटा की बालियां आजमा रहे थे.
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