अचानक भारी बारिश से श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग इस कदर बर्बाद हो गया कि 8 जुलाई को इसे बंद करना पड़ा। रामबन की एसएसपी मोहिता शर्मा ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी । यह एक तरह से कश्मीर के लोगों के लिए जीवनरेखा की तरह है। इसके बंद होने से करीब 5,000 वाहन बीच में फंस गए। अधिकारियों को कश्मीर घाटी को पुंछ और राजौरी के जरिये जम्मू से जोड़ने वाले वैकल्पिक रास्ते मुगल रोड को खोलना पड़ा। आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी की हरी झंडी के बाद 2015 में एनएच 44 को रामबन - बनिहाल के करीब 32 किमी और ऊधमपुर-रामबन के करीब 40 किमी के इलाके में चार लेन बनाने की मंजूरी दी गई थी। रामबन से बनिहाल तक राजमार्ग पर दो बाइपास, छह बड़े तथा 21 छोटे पुल, पैदल चलने वालों तथा मवेशियों की आवाजाही के लिए 152 अंडरपास और छह सुरंगे हैं।
कई लोगों का मानना है कि मौजूदा आपदा की वजह जलवायु परिवर्तन के अलावा सड़कों और सुरंगों के निर्माण में अपनाया गया विकास मॉडल है। नेता और विशेषज्ञ वर्षों से इन परियोजनाओं के टिकाऊपन पर सवाल उठाते रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं इलाके की संवेदनशील भू-संरचना के अनुकूल नहीं है। स्थानीय नेता रामबन इलाके में पर्यावरण सुरक्षा और टिकाऊपन का ध्यान न रखने के लिए अक्सर तीखी आलोचना करते रहे हैं। वरिष्ठ पीडीपी नेता नईम अख्तर ने ट्वीट किया: हाइवे कश्मीर, लद्दाख की जीवन रेखा है। इससे भी बढ़कर रणनीतिक रूप से काफी अहम है, जहां सेना का दुश्मन से सामना होता है। हम 2017 से इलाके के पर्यावरण और भू-संरचना के खिलाफ असंतुलन की बात उठा रहे हैं।
अख्तर के मुताबिक, हाइवे का रामबन से बनिहाल तक का इलाका सबसे अस्थिर है। वे कहते हैं, जितना आप इसमें गड्ढे खोदेंगे, उतना ही यह अस्थिर होता जाएगा और अगली चार पीढ़ियों तक ऐसा ही बना रहेगा। वह यह भी बताते हैं कि राज्य में पीडीपी-भाजपा गठजोड़ सरकार के वक्त उन्होंने यह मुद्दा केंद्रीय राजमार्ग और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के सामने रखा था। इन मसलों को हल करने की कुछ कोशिशें भी हुईं। गडकरी ने इस साल की शुरुआत में इन इलाकों का दौरा भी किया और भूस्खलनग्रस्त इलाके में एक सुरंग का निरीक्षण भी किया। गडकरी ने हाइवे के रामबन इलाके को लेकर चिंता भी जाहिर की, जहां भूस्खलन ज्यादा होता है।
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