अब यह गिनवाने का कोई मतलब नहीं है। कि हाल में विश्वकर्मा जयंती पर शुरू हुई। विश्वकर्मा योजना की क्या प्रगति है या पांच राज्यों के चुनाव के ठीक पहले बड़े धूमधाम से शुरू हुई इस योजना की चर्चा चुनाव के दौरान क्यों नहीं हुई। अर्थव्यवस्था में अपने हुनर से योगदान देने वाली और आज की राजनीति में पिछड़ा या ओबीसी में गिनी जाने वाली जातियों के लोगों को उनके काम के लिए सुविधाजनक शर्तों पर पूंजी/ऋण उपलब्ध कराने वाली इस योजना को मोदी सरकार द्वारा विपक्ष के जातिवार जनगणना अभियान की काट के तौर पर पेश किया गया था। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा अदालती लड़ाई जीतकर अपने यहां जातिवार जनगणना कराने (और फिर उसके अनुसार आरक्षण का कोटा बढ़ाने) जैसे फैसले के बाद भाजपा बैकफुट पर लग रही थी। बिहार में तो उसने जातिवार जनगणना का समर्थन किया था, लेकिन विरोध भी उसकी तरफ से ही हुआ। जातिवार जनगणना कराने और उसके आंकड़े प्रकाशित होने के बाद जैसी प्रतिक्रिया बिहार, उत्तर भारत और देश में मिलती लग रही थी उससे नीतीश कुमार ही नहीं, कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी बहुत उत्साहित लग रहे थे।
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