"न्यायिक तंत्र में भरोसा कायम है"
Outlook Hindi|April 15, 2024
हेम मिश्रा को 2013 में महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले से गिरफ्तार किया गया था। उस वक्त वे दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से जुड़े थे। उनके ऊपर प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) का संदेशवाहक होने और देश के खिलाफ जंग छेड़ने का आरोप लगाया गया।
विक्रम राज
"न्यायिक तंत्र में भरोसा कायम है"

गढ़चिरौली की सत्र अदालत ने 7 मार्च, 2017 को हेम और पांच अन्य व्यक्तियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। वॉम्बे हाइकोर्ट की नागपुर बेंच ने बीते 5 मार्च को इन सभी को बरी कर दिया। रिहाई के बाद हेम मिश्रा ने अपने कैद की अवधि, मुकदमे और अनुभवों पर आउटलुक के विक्रम राज से बात की।

आपको किन परिस्थितियों में गिरफ्तार किया गया था?

मैं उसे गिरफ्तारी नहीं, अपहरण कहता हूं। बात अगस्त 2013 की है जब मैं दिल्ली से डॉ. प्रकाश आम्टे से मिलने गया था। वे आदिवासियों की स्वास्थ्य समस्याओं पर काम कर रहे थे। मैं उनके काम को जानना चाहता था।

दिल्ली से मैं 19 तारीख को चला और 20 तारीख को सुबह दस बजे चंद्रपुर जिले के बल्लारशाह स्टेशन पर उतरा। मुझे हेमलकसा की बस पकड़नी थी जहां प्रकाश आम्टे का अस्पताल है। मैं बस पकड़ने के लिए स्टेशन से बाहर आ रहा था कि अचानक सादे कपड़ों में कुछ लोग आए और मुझे उठा ले गए। समझ नहीं आया कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ क्योंकि वहां मेरी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी।

उन्होंने मुझे एक वैन में डाल दिया। अगले तीन दिनों तक मुझे अलग-अलग जगहों पर ऐसे ही रखा गया। उन्होंने मेरी आंखों पर पट्टी बांध दी थी और मुझे सोने नहीं दे रहे थे। मुझे यातनाएं दी गई। 23 अगस्त 2013 को अहेरी की अदालत में मुझे पेश किया गया।

आपके हिसाब से आपकी गिरफ्तारी की वजह क्या हो सकती है? 

मैं उत्तराखंड का रहने वाला हूं। वहां जब अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन चल रहा था, उसका असर वहां के छात्रों युवाओं पर भी पड़ा था । उत्तराखंड राज्य बनने के बहुत साल बाद मैं जेएनयू पहुंचा लेकिन राज्य को कैसा होना चाहिए इसको लेकर मांगें अब भी लंबित थीं उस आंदोलन से मैं प्रभावित हुआ। जनकवि गिरीश तिवाड़ी 'गिरदा' जैसे लोग उस आंदोलन का हिस्सा होते थे। उनके गीतों में उत्तराखंड के सुदूर गांवों की शिक्षा, पानी, विस्थापन की समस्याएं उभर कर आती थीं विकास बहुत बड़ा मुद्दा था। पहाड़ों में सड़क नहीं थी, रोजगार के मौके नहीं थे। मजबूरी में तकरीबन हर परिवार के एक बंदे को मामूली काम करने के लिए दिल्ली जाना पड़ता था गिरदा के गीतों में ऐसे लोगों की पीड़ा होती थी जिसने मुझ पर असर डाला।

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