जब शाहरुख खान की चक दे इंडिया आई थी, तो दर्शकों को इसमें एक रीयल हीरो नजर आया और इसी बात ने बॉक्स पर पैसे बरसाए थे। इसके बाद फरहान अख्तर की भाग मिल्खा भाग आई। यह फिल्म चक दे इंडिया की तरह धमाल भले न मचा पाई लेकिन दर्शकों ने उसे नकारा नहीं । यह भी हिट की श्रेणी में रही। इसके बाद एमएस धोनी- द अनटोल्ड स्टोरी आई और छा गई। इन फिल्मों की सफलता से निर्माता-निर्देशकों को लगा कि खिलाड़ियों का जीवन सुनहरे परदे पर दिखाना फायदे का सौदा है। क्योंकि आमिर खान की दंगल और सलमान खान की सुल्तान दोनों ही फिल्में ब्लॉकबस्टर साबित हुईं। यहीं पर फिल्म जगत चूक गया और विषय की भेड़चाल में फंस गया।
सूरमा, साइना, शाबाश मिठू ऐसी ही फिल्में हैं, जो पर्याप्त दर्शक नहीं जुटा पाईं। बीते कुछ समय से हिंदी सिनेमा में खेल आधारित फिल्में लगातार फ्लॉप हो रही हैं। खिलाड़ियों के जीवन पर आधारित बायोपिक फिल्मों से लेकर बड़े स्टार कास्ट वाली खेल आधारित फिल्में, बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिर रही हैं।
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शहरनामा गंगा सागर
अंतहीन सागर की कालातीत कहानी
परदे का पुराना प्यार
पुरानी फिल्में सिनेमाघरों में दोबारा दस्तक दे रहीं, नई फिल्मों की नाकामी, व्यावसायिक मुनाफा और पुराने के प्रति दीवानगी ट्रेंड को बढ़ा रही
गरीबों के नायक की सुध
तीन बार के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता मिठुन चक्रवर्ती को दादा साहब फाल्के सम्मान
'जब तक रहूं, नृत्य के साथ रहूं'
करीब छह दशकों से नृत्य कर रहीं शोभना नारायण अभी थकी नहीं हैं। 75 वर्ष की उम्र में भी उनमें उत्साह और जोश-खरोश भरपूर है । बिरजू महाराज की शिष्या शोभना नृत्यांगना ही नहीं, वरिष्ठ नौकरशाह और लेखिका भी हैं। बिहार के एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार में जन्मी शोभना को संस्कृति और कला से लगाव तथा राष्ट्रीय जीवन-मूल्य विरासत में मिले हैं। वे ऐसे परिवार से हैं जहां दिनकर, धर्मवीर भारती, रमानाथ अवस्थी जैसे साहित्यकारों की मंडली घर पर जमती थी। मां ललिता नारायण लोकसभा का चुनाव पटना से लड़ी थीं। उनका जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी से निजी परिचय था। शोभना नारायण के 75वें जन्मदिन पर पिछले दिनों उनके शिष्यों ने नृत्यसमारोह का आयोजन किया। इस मौके पर उनसे विमल कुमार ने खास बातचीत की। संपादित अंशः
वापस पंत नायक
चोटिल खिलाड़ी के लिए फिर मैदान पर शानदार प्रदर्शन करना सबसे बड़ी चुनौती होती है, पंत इस करिश्मे में सफल रहे
पन्ना की तमन्ना हीरा मिल जाए
पन्ना में छोटे-छोटे भूखंडों में मिल रहा हीरे का एक टुकड़ा बदल रहा गरीब आदिवासी किसानों की जिंदगी
अबूझमाड़ में मुठभेड़
यह पहला मौका है जब पुलिसिया दावे के मुताबिक एक ऑपरेशन में इतनी बड़ी संख्या में माओवादी मारे गए
कुर्सी कलाबाजी की मिसाल
पंजाब से टूट कर अलग राज्य बनने के वक्त से ही हरियाणा में कुर्सी के लिए आया गया की दलबदलू राजनीति चल रही
चंपाई महत्वाकांक्षा
कुर्सी जाने पर पाला बदलने और अपने लोगों के खिलाफ खड़े होने का आदिवासी प्रसंग
कुर्सी महा ठगिनी हम जानी
आर्थिक उदारीकरण के पिछले तीन दशक के दौरान भारतीय राजनीति का चरित्र कुछ ऐसा बदला है। कि धन, सार्वजनिक आचरण से लेकर नेताओं का चरित्र तक सब कुछ महज कुर्सी के इर्द-गिर्द सिमट गया है और दलों का फर्क मिट गया है