वाहन प्रदूषण और लगातार हो रहे निर्माण के कारण प्रदूषण से जूझती दिल्ली में वायु गुणवत्ता फिलहाल 'खराब' श्रेणी में है। मगर यह पिछले छह साल (2020 को छोड़कर) में हवा का सबसे स्वच्छ स्तर है और इसका श्रेय अच्छे मॉनसून को जाता है।
केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने उम्मीद जताई है कि यह साल कुछ अलग होगा। इसके लिए वे काफी सक्रियता से काम कर रहे हैं। मगर जमीनी स्तर पर किसानों का कहना है कि पर्याप्त कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। अगर उनकी बात मानी जाए तो पराली जलाने में इस साल भी कोई कमी नहीं आने वाली है।
राज्य में 1 अक्टूबर को धान खरीद का सीजन शुरू होने के साथ ही भारत-पाकिस्तान सीमा से करीब 3 किलोमीटर दूर अमृतसर के अटारी गांव के 52 वर्षीय किसान पुलविंदर मान काफी आशान्वित दिख रहे हैं। उनके खेत हरे और सुनहरे रंग की फसल से लदे पड़े हैं जो अच्छी फसल का संकेत है। मगर इस खुश खबरी के बीच पराली जलाने की समस्या भी छिपी है जो पंजाब, हरियाणा और नई दिल्ली में विवाद को भड़काती है।
पंजाब, हरियाणा एवं अन्य जगहों पर मान जैसे किसानों के लिए पराली जलाने की प्रथा लंबे समय से एक त्वरित समाधान रही है। सितंबर के आखिर अथवा अक्टूबर की शुरुआत में धान की कटाई होने के बाद गेहूं एवं अन्य रबी फसलों की आई के लिए खेत को तैयार करने के लिए एक महीने से भी कम समय होता है। ऐसे में खेतों को जल्द साफ करने के लिए किसान धान के बचे हुए डंठल को जला देते हैं। मगर यह कोई छोटी समस्या नहीं है, क्योंकि केवल पंजाब में ही 31 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में धान की खेती की जाती है।
मान ने पूछा, 'अधिकारी हमें क्या सिखा सकते हैं जो हम पहले से नहीं जानते ?' उन्होंने कहा, 'हमारे परिवार पीढ़ियों से ऐसा करते आ रहे हैं। सरकारी मदद के बिना हम कोई विकल्प नहीं तलाश सकते।'
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